इससे पूरे राज्य में भ्रम और अराजकता का माहौल है। इन तमाम दुविधाओं को दूर करने के लिए राज्य सरकार को एक श्वेत पत्र लाना चाहिए कि वह कोरोना से निपटने के लिए किस तरह के कदम उठा रही है। किस तरह के नियम बनाए जा रहे हैं और क्या प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। राज्य सरकार कोरोना महामारी से निपटने में विफल रही है। सरकार ने 12 माह में महामारी को नियंत्रित करने और चिकित्सा की कोई तैयारियां नहीं की हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि कोविड-19 रोगियों के लिए सरकारी अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध नहीं है और निजी अस्पतालों का खर्च वे उठा नहीं सकते। जीवन रक्षक दवाओं जैसे रेमडेसिविर और ऑक्सीजन की कमी है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष कोरोना का प्रकोप अचानक फैला और पहली बार था। उसकी उम्मीद नहीं की गई थी। लेकिन, उसके बाद जहां सरकार को दूसरी लहर से बचने की तैयारियां करनी चाहिए थी वहीं, कोरोना वायरस की आड़ में सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त रही।
उन्होंने आरोप लगाया कि कोविड-19 रोगियों के लिए सरकारी अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध नहीं है और निजी अस्पतालों का खर्च वे उठा नहीं सकते। जीवन रक्षक दवाओं जैसे रेमडेसिविर और ऑक्सीजन की कमी है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष कोरोना का प्रकोप अचानक फैला और पहली बार था। उसकी उम्मीद नहीं की गई थी। लेकिन, उसके बाद जहां सरकार को दूसरी लहर से बचने की तैयारियां करनी चाहिए थी वहीं, कोरोना वायरस की आड़ में सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त रही।
अब वायरस के आगे सरकार ने समर्पण कर दिया है। दूसरी लहर घातक साबित हो रही है और सरकार लाचार हो गई है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री राज्य में कोरोना संक्रमितों की चिकित्सा के लिए बिस्तर तथा ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं होने का दावा कर रहे हैं।
लेकिन क्या यह वास्तविकता नहीं है कि बेंगलूरु जैसे शहर में कोरोनो संक्रमितों को केवल भर्ती होने के लिए 8-8 घंटे चक्कर लगाने की नौबत आ गई है? क्या यह सच्चाई नहीं है कि समय पर चिकित्सा नहीं मिलने के कारण मरीजों की मौत हो रही है? क्या यह सच्चाई नहीं है कि शहर के चिकित्सालयों को मांग के अनुपात में महज 50 फीसदी ऑक्सीजन उपलब्ध हो रहा है?