इससे पहले कांग्रेस के ही दिग्गज नेता रहे देवराज अर्स 1972 से 1977 तक लगातार पांच साल पद पर रहे थे। हालंाकि, उस वक्त संसद ने संविधान संशोधन कर चुकी विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाकर छह साल कर दिया था लेकिन आपातकाल के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार ने अर्स को बर्खास्त कर दिया था। 1978 में हुए चुनाव के बाद अर्स दुबारा मुख्यमंत्री बने लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। दो वर्ष बाद ही सत्तारुढ़ दल के भीतर उपजे असंतोष के कारण 1980 में उन्हें पद छोडऩा पड़ा। हालांकि, अर्स के नाम ही सबसे अधिक सात साल तक मुख्यमंत्री पद पर रहने का रिकार्ड है। 1978 से कोई भी मुख्यमंत्री लगातार पांच साल तक पद पर नहीं रहा। कुछ सत्तारूढ़ दल के अंदरुनी कलह के कारण पांच साल से पहले ही पद से हट गए तो कुछ आरोपों में घिरे होने के कारण त्यागपत्र देने को मजबूर हुए। वर्ष 1978 से अभी तक लगभग 40 साल की अवधि में राज्य में 19 नई सरकारें बनीं तो चार बार राष्ट्रपति शासन भी लगे।
किसी एक मुख्यमंत्री के पांच साल पूरा नहीं कर पाने का यह सिलसिला भी देवराज अर्स के समय से ही शुरू हुआ। इस दौरान एक मौका ऐसा आया जब एसएम कृष्णा ने राज्य में वर्ष 1999 से 2004 के बीच स्थायी सरकार दी लेकिन वे भी लगातार पांच साल पूरा नहीं कर पाए क्योंकि उन्होंने पांच महीने पहले ही चुनाव कराने का फैसला कर लिया। अगर १२ मई को होने वाले चुनाव में सिद्धरामय्या जीतते हैं तो भी वे अर्स के बाद ऐसे करने पाने वाले दूसरे नेता होंगे, जो पांच साल मुख्यमंत्री रहने के बाद फिर विधानसभा के लिए चुने गए हों। सिद्धरामय्या की तरह अर्स भी मैसूरु जिले औ पिछड़ी जाति से ही थे। कुरुबा समुदाय आने वाले सिद्धरामय्या 2013 में मुख्यमंत्री बनने से पहले दो बार जनता दल (ध) के नेता के तौर पर उपमुख्यमंत्री रह चुके थे। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के करीबी रहे सिद्धरामय्या ने 2005 में जद (ध) छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। मूलत: गैर कांग्रेसी होकर भी सिद्धरामय्या ने पांच साल गद्दी संभाला।