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कागज पर सिमटा प्रतिबंध, खुलेआम मिल रही पीओपी से बनी मूर्तियां

locationबैंगलोरPublished: Aug 17, 2017 05:23:00 am

कावेरी जल विवाद को लेकर पिछले वर्ष भले ही गणेश चतुर्थी की चमक थोड़ी फीकी रही लेकिन इस बार पूरे उत्साह एवं उमंग के गणेशोत्सव की तैयारियां चल रही हैं।

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बेंगलूरु।कावेरी जल विवाद को लेकर पिछले वर्ष भले ही गणेश चतुर्थी की चमक थोड़ी फीकी रही लेकिन इस बार पूरे उत्साह एवं उमंग के गणेशोत्सव की तैयारियां चल रही हैं।


मूर्तियां बनाने वाले कारीगर एवं कारोबारी बड़े पैमाने पर आ रही मूर्तियों की मांग पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। हालांकि, प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है लेकिन उसके बावजूद बाजार में ऐसी मूर्तियों की भरमार है। कहीं-कहीं प्रतिबंध का असर भी है लेकिन मिट्टी से बने गणपति भी धड़ल्ले से बिक रहे हैं।

दरअसल, हर वर्ष बेंगलूरु में कम से कम 5 लाख से अधिक मूर्तियों की मांग होती है और उसमें से लगभग 75 फीसदी पीओपी के बने होते हैं। बड़े कारोबारियों का कहना है कि पिछले वर्ष भी बहुत सी मूर्तियां बची रह गई थीं, जिसे वे इस साल बेचेंगे। मूर्तियों का कारोबार करने वाली एक कंपनी के अधिकारी ने बताया कि उसके पास पिछले साल 15 हजार पीओपी की मूर्तियां हैं। एक कारोबारी ने बताया कि उसे हर रोज पीओपी मूर्तियों के लिए 100 से अधिक कॉल आते हैं। उसके पास 500 से अधिक आर्डर हैं। उसके पास 400 पीओपी मूर्तियां पहले से हैं जिसे केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के ग्राहकों को भेज रहा है।

उसने बताया कि वह बेंगलूरु और राज्य के ग्राहकों को पीओपी से बनी मूर्तियां देने से मना कर सकता है लेकिन उससे कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि वे दूसरे राज्यों से मंगा लेंगे। हालांकि, कोई भी कारोबारी पहचान उजागर नहीं करना चाहता।

एक कारोबारी ने कहा कि पिछले वर्ष कावेरी आंदोलन के कारण वे अपनी मूर्तियां तमिलनाडु के ग्राहकों को नहीं भेज सके जिससे काफी नुकसान उठाना पड़ा। दोनों राज्यों के बीच परिवहन सेवाएं बंद होने से पिछले वर्ष कारोबार नहीं हुआ और इस बार पीओपी की मूर्तियां प्रतिबंधित कर दी गई हैं।

हालांकि, पीओपी पर प्रतिबंध पूरी तरह बेअसर नहीं है। शहर के पॉटरी रोड और आरवी रोड में मिट्टी के गणेश भी मिल रहे हैं। कई कारोबारी पीओपी की मूर्तियां बेचने से मना कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे कोई गैरकानूनी काम कर जेल नहीं जाना चाहते। मिट्टी से गणेश बनाना आसान भी नहीं है। कारीगरों का कहना है कि मिट्टी से मूर्तियां बनाने में चार से छह महीने का समय लगता है वहीं पीओपी मूर्तियों का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है और कारीगर उस प्रतिस्पद्र्धा में पिछड़ जाते हैं।

एक रिटेल कारोबारी ने बताया कि उसने इस वर्ष भी एक हजार अधिक पीओपी की मूर्तियां तैयार की लेकिन उन्हें सिर्फ दूसरे राज्यों को बेच रहा है। वह बेंगलूरु में बेचने की जोखिम और तनाव नहीं लेना चाहता। अधिकांश स्थानों पर मिट्टी से बने गणेश मूर्तियों में भी फिनिशिंग के लिए पीओपी का इस्तेमाल किया जा रहा है।

उधर, राज्य प्रदूषण बोर्ड के अध्यक्ष लक्ष्मण का कहना है कि मूर्ति निर्माताओं को पीओपी से बनी मूर्तियों का स्टॉक खाली करने के लिए पर्याप्त समय दिया जा चुका है। उन्हें पिछले वर्ष तक स्टॉक खाली कर देना था। इस वर्ष पीओपी पर प्रतिबंध लगाने के लिए सभी उपायुक्तों और ग्राम पंचायतों को अधिसूचित किया जा चुका है। इस वर्ष सिर्फ उन्हीं मूर्तियों को विसर्जित करने की इजाजत दी जाएगी जो मिट्टी से बने होंगे।

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