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कागजों में सिमटी स्मार्ट सिटी परियोजना

locationबैंगलोरPublished: Jul 16, 2018 11:46:00 pm

Submitted by:

Rajendra Vyas

राज्य के 6 चयनित शहर में अब तक रुपया खर्च नहीं

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कागजों में सिमटी स्मार्ट सिटी परियोजना

बेंगलूरु. देश के 100 शहरों को वैश्विक मानकों पर विकसित करने के मकसद से शुरू की गई स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत राज्य के जिन शहरों का चयन किया गया है, वहां योजना के क्रियान्वयन में अब तक घोर लापरवाही दिखी है। प्रधानमंत्री मोदी की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के क्रियान्वयन में लापरवाही बरतने का ही नतीजा है जमीनी स्तर पर अब तक इसकी झलक नहीं दिखती है।
हालांकि, इस परियोजना को सफल बनाने के लिए केन्द्र सरकार ने समयबद्ध अनुदान जारी किया और आवश्यक निर्देश दिए गए लेकिन जमीनी हकीकत है कि परियोजना के कार्यान्वयन के लिए धन का उपयोग नहीं किया जाता है। स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होने के लिए तीन चरणों में राज्य के सात शहरों का चयन किया गया है। इनमें बेंगलूरु को छोड़कर, अन्य छह शहरों के लिए 16 56 करोड़ रुपए जारी हुए। इसमें 40 से 50 करोड़ रुपए कार्यालयों के निर्माण, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) की तैयारी, विकास और अन्य प्रक्रियाओं को तेज करने के लिए राज्य और नगरपालिकाओं द्वारा बनाई गई कंपनियों के विशेष प्रयोजन निकायों (एसपीवी) का गठन आदि पर खर्च हुए। हालांकि, यह आश्चर्य की बात है कि परियोजना के कार्यान्वयन पर कोई राशि खर्च नहीं हुई।
दरअसल इस परियोजना को क्रियान्वित करने की पूरी प्रकिया एसपीवी के माध्यम से होनी है। एसपीवी में 15 सदस्य होंगे जिनमें नगरनिगमों से संबंधित छह अधिकारी, राज्य के सचिव स्तर के छह अधिकारी, दो स्वतंत्र सदस्य तथा केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत एक अधिकारी होंगे। स्मार्ट सिटी के तहत अगर कोई परियोजना 10 करोड़ रुपए के अनुमानित लागत की है तो इसकी स्वीकृति प्रबंध निदेश स्तर पर मिलेगी। वहीं 10 करोड़ रुपए से 50 करोड़ रुपए के बीच की परियोजनाओं की स्वीकृति प्रशसनिक समिति करेगी जबकि 200 करोड़ रुपए तक की परियोजना उच्च स्तरीय समिति करेगी जिसकी अध्यक्षता मुख्य सचिव करेंगे। अगर परियोजना 200 करोड़ रुपए से ज्यादा की है तब इसे मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलेगी।
चार साल बाद भी सिर्फ निविदा प्रक्रिया
पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या नीत कांग्रेस सरकार ने आरंभ में परियोजना को किय्रान्वित करने को लेकर तेजी दिखाई थी लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं हुआ। वर्ष-2015 में दावणगेरे तथा बेलगावी का स्मार्ट सिटी के लिए चयन हुआ था। वहीं वर्ष-2016 में तुमकूरु, शिवमोग्गा, हुब्बली-धारवाड़ और मेंगलूूरु का चयन जबकि वर्ष-2017 में बेंगलूरु को शामिल किया गया। परियोजना से संबंधित अधिकारियों का कहना है कि बेंगलूरु को छोड़कर शेष शहरों के लिए अब तक करीब 1100 करोड़ रुपए की परियोजनाएं निविदा के विभिन्न चरणों में है। स्मार्ट शहर के लिए चयनित शहरों को पांच वर्ष के दौरान हर वर्ष केन्द्र सरकार से 200 करोड़ रुपए मिलेंगे और शेष राशि की जरुरत को पूरा करने के लिए निजी भागीदारी करनी होगी।
साल भर बाद भी ढाक के तीन पात वाली स्थिति
साल भर बाद भी बेंगलूरु में स्मार्ट सिटी परियोजना रफ्तार नहीं पकड़ पाई है। परियोजना के क्रियान्वयन के लिए गठित विशेष सरकार उपक्रम ही अभी संसाधनों की कमी से जूझ रहा है।
इस उपक्रम मेंं सरकार ने जिन प्रशासनिक अधिकारियों को तैनात भी किया है वे सिर्फ अतिरिक्त पदभार संभाल रहे हैं लिहाजा वे स्मार्ट सिटी परियोजनर पर पूरी तरह केंद्रित नहीं हैं। उपक्रम के पास अभी तकनीकी विशेषज्ञ भी नहीं है। शहरी विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उपक्रम में महाप्रबंधक (तकनीक) का पद रिक्त है। परियोजना से जुड़े काम अभी प्रारंभिक चरण में हैं, प्रस्ताव तैयार हो चुके हैं लेकिन बिना तकनीकी विशेषज्ञ के इसे अंजाम तक पहुंचाना संभव नहीं है। प्रशासनिक स्तर पर अभी 8 अधिकारी उपक्रम में हैं जिन सभी के पास अतिरिक्त प्रभार हैं। उपक्रम मेंं निदेशक स्तर के कुल 15 पद हैं जिनमें से 8 राज्य सरकार के कोटे के हैं, जिनमें शहरी विकास विभाग के मुख्य सचिव के अलावा 6 बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका से होंगे। केंद्र सरकार के प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकारी को भी अभी नामित नहीं किया गया है।
बेंगलूरु राज्य का सांतवां शहर है जिसे पिछले साल जून में स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल किया गया था। हालांकि, परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए विशेष उपक्रम इस साल जनवरी में बन पाया। उपक्रम के निदेशक मंडल की अभी तक सिर्फ बैठकें हुई हैं और तीसरी बैठक इसी सप्ताह होने की संभावना है। परियोजना के तहत शहर के चुनिंदा इलाकों में जनसुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार पांच साल के दौरान 1700 करोड़ रुपए की राशि आवंटित करेगी जिसमें से एक साल का वक्त पहले ही गुजर चुका है। अधिकारियों का कहना है कि परियोजना के क्रियान्वयन में धन का आवंटन भी एक मसला है। बेंगलूरु के लिए हाल ही में धन का आवंटन हुआ है लिहाजा अब काम रफ्तार पकड़ेगा।
स्मार्ट शहर का मतलब
शहर की पूरी आबादी को शुद्ध पेयजल प्रदान करना, स्वच्छता बनाए रखना, अपशिष्ट को संभालने का कुशल तरीका, पर्यावरण के अनुकूल परिवहन और ई-प्रशासन को बढावा देना। जनता को आसान तरीके से सेवाएं प्रदान तथा नवीनतम तकनीक का उपयोग करके लोगों की जरूरतों को सरल बनाना शामिल है।
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