बैंगलोर

साधना में रत होने का सरल उपाय आहार संज्ञा में नियंत्रण

धर्मसभा में बोले आचार्य देवेन्द्र सागर

बैंगलोरOct 25, 2020 / 12:35 pm

Yogesh Sharma

साधना में रत होने का सरल उपाय आहार संज्ञा में नियंत्रण

बेंगलूरु. नवपद ओली की आराधना के अंतर्गत सलोत जैन आराधना भवन में साधनामय स्वर्णिम चातुर्मास में नवपद ओली की आराधना के दूसरे दिन आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने मानव जीवन की दुर्लभता, भावधर्म की मुख्यता और नवपद के आलंबन की श्रेष्ठता को धर्म प्रवचन के माध्यम से अभिव्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जैसे ध्वज व कलश के बिना जिनालय अपूर्ण माना जाता है, वैसे ही ध्यान भी कलश-रूप है। बिना ध्यान के योग अधूरा है। सिद्धपद की साधना के लिए शीर्ष स्थान पर लाल वर्ण का ध्यान करें। जिसके हृदय में सिद्ध की प्रतिकृति फलित होती है, वह सिद्धि सोपान तक पहुंच जाता है। जैसे एक अरबपति का पुत्र। व्यापार में गड़बड़ हो गई। गरीब स्थिति में आ गया। उसे अगर कोई कहे- तुम्हारे पिताजी ने अमुक रुपए गाढ़ कर रखे हैं। वह क्या करेगा। तत्क्षण खोदने का कार्य शुरू कराएगा, गाढ़ा हुआ धन प्राप्त करेगा। उसी प्रकार हमारी आत्मसंपत्ति, अनंत ज्ञान-दर्शन-चारित्र, अव्याबाध सुख, अरूपित्व, अक्षय स्थिति, अगुरू-लघु व अनंतवीर्य रूप खजाना भीतर में छिपा पड़ा है। इसके उपर के आवरणों को छेदने से जीव में ये गुण प्रकट होंगे। सिद्ध सर्व प्रकार के बंधनों से रहित व चैदह राजलोक के उपर मकुट समान है। सिद्धपद का आराधक आहार के प्रति आसक्त नहीं रहता। आहार संज्ञा पर नियंत्रण पाने के लिए प्रारंभ में स्वाद रहित आयंबिल का तप सर्वोत्तम मार्ग है। जिनशासन में अन्य पर्व वर्ष में एक बार आते हैं और नवपद की आराधना वर्ष में दो बार ऋतु परिवर्तन के समय आती है। मन को पुष्टिकारक, विकारवर्धक आहार इस आराधना में न मिलने से वर्ष में दो बार तन-मन जीवन की शुद्धि हो जाने का लाभ साधक आत्मा को प्राप्त हो जाता है। प्रवचन के पश्चात ट्रस्टी महोदय जयंती भई ने बताया कि अनेक श्रद्धालुओं द्वारा ओली तप एवं वर्धमान तप के आयम्बिल के साथ शाश्वत नवपद ओली की आराधना-साधना की जा रही है। इन अनुष्ठानों में कोरोना संक्रमण काल में शासन द्वारा जारी दिशा निर्देशों का पालन किया जा रहा है।

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