उसने बताया कि वारदात के बाद वह बाइक पर ही भागा था। वहां से कामाक्षीपाल्या में अमोल काले के किराए के मकान पर गया। जहां वे टीवी चैनलों पर हत्या से संबंधित खबरें देखते रहे। फिर सभी ने मिलकर पार्टी की। घटना के अगले ही दिन उसे बेंगलूरु सिटी रेलवे स्टेशन से विजयपुर जिले के सिंदगी स्थित उसके घार भेज दिया गया।
साथियों को पहचानने से किया था इंकार परशुराम ने गिरफ्तारी के बाद शुरुआती पूछताछ में अमोल काले, शिकारीपुर के सुजीत कुमार और मनोहर की तस्वीरें देखकर पहचानने से इंकार कर दिया था। जब एसआइटी ने सबूत सामने रखे तो परशुराम ने माना कि वह तीनों को जानता है।
इससे पहले एसआइटी ने शुक्रवार को ही उसे बेलगावी जिले में खानपुर के जंगलों में ले जाकर जांच की। जहां परशुराम को काले और मनोहर ने पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण दिया था। परशुराम ने कहा है कि वह नवीन कुमार और अमित देगवेकर को नहीं पहचानता। वह एक धार्मिक संगठन में था, जहां उसकी शिकारीपुर के सुजीत से पहचान हुई। उसी ने पुणे में अमोल काले से परिचय कराया था।
इससे पहले एसआइटी ने शुक्रवार को ही उसे बेलगावी जिले में खानपुर के जंगलों में ले जाकर जांच की। जहां परशुराम को काले और मनोहर ने पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण दिया था। परशुराम ने कहा है कि वह नवीन कुमार और अमित देगवेकर को नहीं पहचानता। वह एक धार्मिक संगठन में था, जहां उसकी शिकारीपुर के सुजीत से पहचान हुई। उसी ने पुणे में अमोल काले से परिचय कराया था।
परिवार की जिम्मेदारी लेने तैयार था अमोल परशुराम के अनुसार जब उसे हत्या करने को कहा गया था तो पहले वह तैयार नहीं था। काले दबाव डाल रहा था और उसे आश्वासन दिया था कि उसे फंसने नहीं देगा। यदि गिरफ्तारी हुई तो वह जुबान बंद रखे। उससे यह भी कहा गया कि यदि पुलिस दबाव डाले तो आत्महत्या कर ले। अमोल ने परशुराम के परिवार की जिम्मेदारी लेने की कमस खाई थी।
परशुराम ने बताया है कि हत्या करने के बाद काले कोट वाले एक व्यक्ति ने उसे 10 हजार रुपए दिए थे। उसके साथ एक और व्यक्ति भी था और सब उसे दादा कह कर बुलाते थे। हत्या के लिए एक अन्य व्यक्ति ने बाइक उपलब्ध कराई थी। एसआईटी अब इन तीनों व्यक्तियों को तलाश कर रही है।