बैंगलोर

वलय के रूप में चमक उठेगा सूर्य का एक हिस्सा

भारत में 15 जनवरी 2010 के वलय ग्रहण के बाद आगामी 26 दिसम्बर को फिर से ऐसा ही ग्रहण, दक्षिण भारतीय राज्यों में दिखेगा ग्रहण का विलक्षण रूप

बैंगलोरDec 14, 2019 / 10:18 pm

Rajeev Mishra

वलय के रूप में चमक उठेगा सूर्य का एक हिस्सा

बेंगलूरु.
दस वर्ष के अंतराल पर भारत में एक बार फिर सूर्य का ऐसा ग्रहण होने जा रहा है जो अनूठा और विलक्षण है। यह ग्रहण वलय या कंकड़ ग्रहण कहलाता है।
भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर (सेनि) रमेश कपूर ने बताया कि यद्यपि वलय ग्रहण का वैज्ञानिक महत्व कम है किंतु इसका शैक्षिक महत्व बहुत है। चंद्रमा, पृथ्वी का और पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है। सूर्य का ग्रहण चंद्रमा के पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाने से होता है और चंद्रमा का ग्रहण इसके पृथ्वी की छाया में आ जाने से होता है। चूंकि, चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से 5 डिग्री से थोड़ी ज्यादा झुकी हुई है इसलिए हर अमावस्या को सूर्य और हर पूर्णिमा को चंद्रमा के ग्रहण की स्थिति नहीं बनती। चंद्रमा की छाया शंकु के रूप में है और जब यह पृथ्वी की सतह पर पड़ती है तो यह पश्चिम से पूर्व की ओर 1730 किमी प्रति घंटे की गति से चलती है। यह एक महीन पथ बना लेती है जिसे ग्रहण का पथ कहा जा सकता है। यह पथ 16 हजार किमी लंबा हो सकता है किंतु चौड़ाई में 100 से 267 किमी तक ही हो सकता है। इस पथ के भीतर से सूर्य ग्रहण को पूर्ण अवस्था में देखा जा सकता है।
इसलिए दिखता है सूर्य वलय के रूप में
प्रोफेकर कपूर ने बताया कि ग्रहण का पूर्ण होना इस कारण से है कि अपने कोणीय आकार से चंद्रमा सूर्य को पूरा ढंक लेता है। इस छाया पथ से बाहर भी सूर्य ग्रहण होता है किंतु वह आंशिक होता है। चंद्रमा और पृथ्वी दोनों की कक्षाएं दीर्घवृत्ताकार हैं इससे चंद्रमा की पृथ्वी से और पृथ्वी की सूर्य से दूरी घटती बढ़ती है। इस कारण चंद्रमा और सूर्य दोनों के कोणीय आकार भी घटते-बढ़ते हैं। ऐसी स्थिति में जब चंद्रमा सूर्य को एक रेखण होने पर भी पूरी तरह ढंक नहीं पाता है तो सूर्य का बाहरी हिस्सा एक वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। ऐसा ग्रहण असाधारण तो नहीं है किंतु भारत में 15 जनवरी 2010 के वलय ग्रहण के बाद आगामी 26 दिसम्बर को फिर से ऐसा ही ग्रहण देखने का अनूठा संयोग बनने जा रहा है। वलय ग्रहण के पथ के बाहर भी ग्रहण आंशिक ही होगा जो शेष भारत से देखा जा सकेगा।
पूर्ण अवधि 3 घंटे, वलय रूप 3 मिनट की
इस बार वलय ग्रहण का पथ 118 किमी चौड़ा है। ग्रहण का आरंभ सऊदी अरब से होगा और दक्षिण भारत, श्रीलंका, सिंगापुर एवं बोर्नियो से होता हुआ प्रशांत महासागर में खत्म होगा। इस ग्रहण की पूर्ण अवधि 3 घंटे से थोड़ी अधिक है और ग्रहण का वलय रूप 3 मिनट की अवधि का होगा।
यह है वलय ग्रहण का पथ
दक्षिण भारत में वलयग्रहण की छाया मेंगलूरु, कासरगोड़, कोझीकोड, कन्नूर, ऊटी, कोयम्बटूर, पलनी, डिंडीगुल पुद्दुकोटई, शिवगंगा और तिरुचिरापल्ली, आदि स्थानों के ऊपर से होकर गुजरती है। इस ग्रहण को किसी भी समय कोरी आंख से देखना ठीक नहीं है। देखने के लिए रक्षक फिल्म का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इस ग्रहण के दौरान सूर्य के वलय की चमक में इसका कॅरोना नहीं देखा जा सकेगा किंतु वलय रूप अपने आप में ही विलक्षण है। पूर्णता के समय आसपास की रोशनी थोड़ी कम जरूर होगी किंतु संध्या का अभास नहीं होगा।
ग्रहण का समय
भारत के पश्चिमी तट पर यह ग्रहण प्रात: 8.04 मिनट पर शुरू होगा। इसके 2 मिनट बाद ग्रहण कोयम्बटूर में शुरू होगा। देश के पूर्वी तट पर मनमेलकुड़ी में यह ग्रहण 8.08 बजे आरंभ होगा। ग्रहण का वलय रूप ग्रहण के आरंभ के लगभग 81 मिनट बाद देखा जा सकेगा।
बेंगलूरु सहित पूरे देश में आंशिक ग्रहण
देश के बाकी हिस्सों की तरह बेंगलूरु में यह ग्रहण आंशिक है। बेंगलूरु से देखने पर सूर्य का 93 फीसदी हिस्सा ढंक जाएगा। बेंगलूरु में यह ग्रहण 8.06 बजे शुरू होगा। प्रोफेसर कपूर ने कहा कि ग्रहण को ज्ञान पर्व के रूप में मनाना चाहिए इसमें शिक्षा संस्थाओं और जन विज्ञान केंद्रों की महत्वपूर्ण भागीदारी होनी चाहिए। हजारों की संख्या में शौकिया लोग इस ग्रहण की तस्वीरें लेने के लिए देश-विदेश से इसके पथ के भीतर के स्थानों में पहुंचने जा रहे हैं।
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