धन भोग के लिए स्वस्थ रहना जरूरी
बेंगलूरु. जैन श्वेतामबर मूर्तिपूजक संघ शांतिनगर में आचार्य महेंंद्र सागर ने कहा कि धन को भोगने के लिए इंसान का स्वस्थ रहना भी जरूरी है।
उन्होंने कहा कि इंसान भगवान की और गुरु की मानता कहां है। गुरु आए, प्रवचन सुना पर दुकान जाना है क्योंकि धन कमाना है। दुर्भाग्यशाली वेे हैं, जिन्हें धन तो मिला है मगर स्वास्थ्य और धर्म नहीं मिला है। व्यक्ति धनी है मगर बीमार है। सौभाग्यशाली वो हैं जिनके पास धन के अलावा स्वास्थ्य भी होता है।
बेंगलूरु. जैन श्वेतामबर मूर्तिपूजक संघ शांतिनगर में आचार्य महेंंद्र सागर ने कहा कि धन को भोगने के लिए इंसान का स्वस्थ रहना भी जरूरी है।
उन्होंने कहा कि इंसान भगवान की और गुरु की मानता कहां है। गुरु आए, प्रवचन सुना पर दुकान जाना है क्योंकि धन कमाना है। दुर्भाग्यशाली वेे हैं, जिन्हें धन तो मिला है मगर स्वास्थ्य और धर्म नहीं मिला है। व्यक्ति धनी है मगर बीमार है। सौभाग्यशाली वो हैं जिनके पास धन के अलावा स्वास्थ्य भी होता है।
संतों की भूमि है भारत
बेंगलूरु. विजयनगर स्थानक में साध्वी मणिप्रभा ने कहा कि यह भारत की भूमि संतों की भूमि रही है। महान भगवंतों की भूमि रही है, जिस व्यक्ति ने इस भूमि पर जन्म को ग्रहण कर कुछ कर दिखाया वास्तव में उन्हीं का नाम श्रद्धा भक्ति के साथ लिया जाता है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति जीवन को अनंत आयामों में जीते हैं, रहस्यों में जीते हैं, वे स्वयं भी रहस्मय हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तित्व के जीवन को जानने, समझने अनुभव करने के लिए अपने व्यक्तित्व को भी विकसित करना पड़ता है। ऐसे ही विराट व्यक्तित्व के धनी परम आराध्य, जन जन की श्रद्धा के केंद्र, भक्तों के भगवान आचार्य आनंद ऋषि का जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव चिंचोडी में हुआ। उनका बचपन का नाम नेमीचंद था। उस महापुरुष का जीवन सरल, सरस, मधुर था।
बेंगलूरु. विजयनगर स्थानक में साध्वी मणिप्रभा ने कहा कि यह भारत की भूमि संतों की भूमि रही है। महान भगवंतों की भूमि रही है, जिस व्यक्ति ने इस भूमि पर जन्म को ग्रहण कर कुछ कर दिखाया वास्तव में उन्हीं का नाम श्रद्धा भक्ति के साथ लिया जाता है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति जीवन को अनंत आयामों में जीते हैं, रहस्यों में जीते हैं, वे स्वयं भी रहस्मय हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तित्व के जीवन को जानने, समझने अनुभव करने के लिए अपने व्यक्तित्व को भी विकसित करना पड़ता है। ऐसे ही विराट व्यक्तित्व के धनी परम आराध्य, जन जन की श्रद्धा के केंद्र, भक्तों के भगवान आचार्य आनंद ऋषि का जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव चिंचोडी में हुआ। उनका बचपन का नाम नेमीचंद था। उस महापुरुष का जीवन सरल, सरस, मधुर था।
गुणों के भंडार थे आनंदसागर
बेंगलूरु. आचार्य मुक्ति सागर ने आचार्य आनंदसागर की जयंती पर गुणानुवाद सभा में कहा कि वे समता, सरलता, करुणा, रस त्याग आदि अनेक गुणों के भंडार थे। आज जो कुछ आगमों का ज्ञान साधु साध्वी को मिल रहा है उसमें उन्हीं की अहम भूमिका रही है। मुनि अष्ठरत्नसागर ने भी उनसे जुड़े रोचक प्रसंग सुनाए। श्रावक श्राविकाओं ने भी गुरुदेव का गुणगाान किया। शहर के सभी प्रमुख जिनालयों में आंगी रचाई गई।