अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट ने पूरे किए तीन साल
बैंगलोरPublished: Sep 28, 2018 06:55:17 pm
भारतीय खगोल वैज्ञानिकों के लिए बेहद उपयोगी मिशन, गहन अंतरिक्ष की कई गुत्थियां सुझलाई
अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट ने पूरे किए तीन साल
बेंगलूरु. खगोल विज्ञान को समर्पित देश की अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट ने शुक्रवार को अपनी कक्षा में तीन वर्ष पूरे कर लिए। 28 सितम्बर 2015 को इसे इसरो ने श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया था। इसे पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया था।
यह मिशन मूल रूप से 5 वर्ष के लिए भेजा गया है और यह अभी भी पूरी तरह सक्रिय है। चौथे वर्ष में प्रवेश करने तक देश की इस प्रथम अंतरिक्ष वेधशाला ने अनेक सुखद आश्चर्य दिए।
गत तीन वर्षों के दौरान इसने प्रचुर शोध सामग्री उपलब्ध कराई जिनके आधार पर 100 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। इस सफलता से उत्साहित इसरो अब एस्ट्रोसैट श्रृंखला के अगले उपग्रह एस्ट्रोसैट-2 भी लांच करने की योजना बना रहा है जो पहले मिशन के प्रयोगों को आगे बढ़ाएगा।
एस्ट्रोसैट एक बहुतरंग वेधशाला है अर्थात उच्च ऊर्जा की एक्स किरणों से लेकर पराबैंगनी तक के वर्णक्रम की विभिन्न ऊर्जाओं पर इसके उपकरण न सिर्फ एक साथ काम कर सकते हैं बल्कि तत्क्षण प्राप्त शोध सामग्री के आधार पर एक ही स्रोत या घटना का विभिन्न ऊर्जाओं पर महत्वपूर्ण अध्ययन किया जा सकता है।
इस पर 5 वैज्ञानिक उपकरण रखे गए हैं, जो कार्यशील हंै। इनमें अल्ट्रावायलट इमेजिंग टेलीस्कोप, सॉफ्ट एक्स-रे टेलीस्कोप, लार्ज एरिया एक्सरे प्रोपोर्शनल काउंटर, कैडमियम जिंक टेल्युराइड इमेजर और स्कैनिंग स्काई मॉनिटर शामिल हैं। पराबैंगनी दूरबीनों से उच्च विभेदन के आधा डिग्री चौड़े क्षेत्र में बिंब प्राप्त किए गए हैं जबकि 4 उपकरण इस तरह से एक- रेखण में हैं कि किसी स्रोत का विभिन्न ऊर्जाओं पर अध्ययन एक ही समय में किया जा सके। एस्ट्रोसैट के अध्ययनों में देश-विदेश से वैज्ञानिक शामिल हैं।
अब तक इसके जरिए 750 स्रोतों का अध्ययन किया जा चुका है। अगले महीने से इसका नया प्रेक्षण चक्र शुरू हो रहा है। एस्ट्रोसैट की अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं। क्रैब निहारिका की पलसार से आती एक्स किरणों का अनपेक्षित धु्रवण की खोज, ग्रहमंडल युक्त निकटतम तारों में से एक के किरीट में विस्फोट का प्रेक्षण जो स्वतंत्र रूप से चंद्रा एक्सरे वेधशाला और हब्बल स्पेस टेलीस्कोप ने भी पकड़ा था। एस्ट्रोसैट से दो गोलाकार तारापुंजों के सम्मलिन के संकेत मिले और यही घटना आकाशगंगा पुजों के विषय में भी ज्ञान में आई। एस्ट्रोसैट से ही जैलिफिश आकाशगंगा के तंतुओं में नए तारों के निर्माण के संकेत मिले।
एस्ट्रोसैट की उपलब्धियों की सूची लंबी ;प्रो. रमेश कपूर, खगोलविद्
एस्ट्रोसैट की उपलब्धियों और अनुसंधानों की सूची काफी लंबी है। यह भारतीय वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का एक महत्वपूर्ण जरिया बन चुका है। कक्षा में स्थापना के बाद से ही यह वेधशाला महत्वपूर्ण जानकारियां उलब्ध करा रही है। एस्ट्रोसैट के उपकरण द्वारा ली गई विलक्षण तस्वीरों और अध्ययनों से भारतीय खगोल वैज्ञानिकों को कई जानकारियां पहली बार मिली हैं।