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इस्तीफे के ‘मकसद’ की जांच करना स्पीकर का काम नहीं

locationबैंगलोरPublished: Nov 13, 2019 09:32:00 pm

Submitted by:

Rajeev Mishra

सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर की भूमिका पर की महत्वपूर्ण टिप्पणी, स्पीकर का दायरा सिर्फ यह देखना है कि इस्तीफा ‘स्वेच्छा’ से और ‘सहज’ रूप से दिया गया

इस्तीफे के 'मकसद' की जांच करना स्पीकर का काम नहीं

इस्तीफे के ‘मकसद’ की जांच करना स्पीकर का काम नहीं

बेंगलूरु. कांग्रेस-जद-एस के अयोग्य ठहराए गए 17 विधायकों पर फैसला देते हुए देश की शीर्ष अदालत ने किसी जन प्रतिनिधियों के इस्तीफे स्वीकार करने अथवा अयोग्य ठहराए जाने के संदर्भ में स्पीकर की भूमिका पर काफी महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्पीकर सदन के किसी सदस्य द्वारा इस्तीफा देने के ‘मकसद'(मोटिव) के पीछे नहीं जा सकता। इसे संवैधानिक रूप से ‘अविवेकी’ और ‘असंगत’ माना जाएगा। किसी सदस्य का इस्तीफा स्वीकार करने अथवा उसे अस्वीकार करने के संदर्भ में स्पीकर की जांच का दायरा सिर्फ इस बात का परीक्षण करने तक सीमित है कि इस्तीफा ‘स्वेच्छा’ से और ‘सहज’ रूप से दिया गया है। संविधान की धारा 190 (3) स्पीकर को इस बात की इजाजत नहीं देती कि वह किसी सदस्य के इस्तीफा देने के पीछे छिपे ‘मकसद’ की जांच करे। स्पीकर के लिए यह संवैधानिक रूप से अनुचित है कि इस्तीफे पर विचार करते हुए अन्य ‘बाहरी कारकों’ पर गौर करे। अगर यह एक बार साबित हो जाता है कि सदस्य अपनी इच्छा से इस्तीफा दे रहा है तो स्पीकर के पास उसे स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस कृष्णा मुरारी की पीठ ने कहा कि ‘स्पीकर की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा के अधीन है।’ वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि ‘सदन के सदस्य ने इस्तीफा स्वेच्छा से दिया है या नहीं इसकी जांच करते हुए स्पीकर इस्तीफा देने के पीछे के मकसद में भी जा सकता है और इस्तीफा अस्वीकार भी कर सकता है अगर वह किसी राजनीतिक दबाव में दिया गया हो।’ लेकिन, पीठ ने कहा कि ‘हम इस तर्क को स्वीकार नहीं कर सकते।’ शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि भले ही इस्तीफे को लेकर स्पीकर का संतुष्ट होना ‘व्यक्तिपरक’ है लेकिन यह ‘वस्तुनिष्ठ’ भी होना चाहिए। जब कोई सदस्य अपने पद से लिखित रूप से इस्तीफा देता है तो स्पीकर को यह पता लगाने के लिए सदस्य अपनी सदस्यता त्यागना चाहता है तुरंत जांच करवानी चाहिए। जांच संवैधानिक प्रावधानों और सदन के नियमों के तहत होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि ‘स्पीकर द्वारा तटस्थ रहने के संवैधानिक कर्तव्य के विपरीत कार्य करने के मामले बढ़ रहे हैं। इससे लालच देकर खरीद-फरोख्त या दल-बदल से जुड़े भ्रष्ट आचरण और वाफादारी बदलने के चलन को समाप्त नहीं किया जा सका है। इसके चलते जनता एक स्थिर सरकार से वंचित हो रही है। इन परिस्थितियों में कुछ पहलुओं को मजबूत करने पर विचार करने की आवश्यकता है ताकि इस तरह की गैर-लोकतांत्रिक प्रथाओं पर लगाम लगाई जा सके।’

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