आचार्य विद्यासागर पर विशिष्ट आवरण और डाक टिकट जारी
आचार्य विद्यासागर पर विशिष्ट आवरण और डाक टिकट जारी
बेंगलूरु. कर्नाटक डाक सर्किल, भारतीय डाक विभाग बेंगलूरु ने सोमवार को “संस्कृति शासनाचार्य स्वर्ण महोत्सव” के अवसर पर एक विशिष्ट आवरण और मुहर का मुख्य डाकघर बेंगलूरु में लोकार्पण किया। यह महोत्सव आचार्य विद्यासागर के आचार्य पदवी पर आरोहण के 50 वर्ष पूरे होने की वर्षगांठ पर मनाया जा रहा है।
डाक विभाग बेंगलूरु के निदेशक सेवा एम.बी. गजभिये ने इस विशिष्ट आवरण का लोकार्पण डी. सुरेंद्रकुमार हेगड़े के मुख्य आतिथ्य में कराया। इस कार्यक्रम में बेंगलूरु दिगंबर जैन समाज के कई लोग उपस्थित थे। इस युग के एक महान व्यक्तित्व, महाकवि जैन आचार्य विद्यासागर के आचार्य पदवी पर आरोहण के 50 वर्ष पूरे होने की वर्षगांठ पर इस तरह के विशिष्ट आवरण और मुहर के लोकार्पण का यह कार्यक्रम पूरे भारतवर्ष में दिगंबर जैन समाज ने देश के110 पोस्ट ऑफिस में आयोजित किया।
आचार्य विद्यासागर का जन्म एक प्रतिष्ठित किसान परिवार में 10 अक्टूबर 1946 को कर्णाटक प्रदेश के सदलगा ग्राम में हुआ था। वे बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे और उन्होंने 30 जून 1968 को संसार से बैराग्य धारण कर जैन मुनि की दीक्षा ली। 22 नवम्बर 1972 को आचार्य पद पर आरुढ़ हुए। आचार्य बहुत सी भाषाओं के ज्ञाता हैं और उन्होंने 100 से अधिक ग्रंथों का अनुवाद और लेखन हिंदी संस्कृत प्राकृत आदि भाषाओं में किया है। आचार्य का एक महाकाव्य मूक माटी बहुत से शोधकर्ताओं के लिए डॉक्टरेट का विषय रहा है। जैन मुनि संहिता के तपस्वी साधक, आचार्य धर्म और दर्शन के विद्वान हैं। साहित्यकार अध्यात्मिक प्रवचनकर्ता भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ और राष्ट्रीय चिंतक हैं। आचार्य 400 से अधिक मुनिराजों और महाव्रतियों के प्रणेता और मार्गदर्शक हैं। अहिंसा के विचारों को साकार कर उनकी प्रेरणा से 72 से अधिक गौशालाएं संचालित हो रही हैं। उनकी प्रेरणा से युवकों को रोजगार देने के लिए कई हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र खोले गए हैं। आचार्य कई चिकित्सालय, शैक्षणिक संस्थाओं और छात्रावासों के भी प्रणेता हैं।
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