
बेंगलूरु. राज्य मंत्रिमंडल ने दलित वामपंथी गुटों द्वारा आंतरिक आरक्षण लागू करने के दबाव में आकर सोमवार को एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक आयोग गठित करने का निर्णय लिया, जो यह सुझाव देगा कि किस तरह के अनुभवजन्य आंकड़ों पर भरोसा किया जाए जो अदालतों को स्वीकार्य होंगे।
आयोग को अपनी सिफारिशें देने के लिए तीन महीने का समय दिया जाएगा, राज्य सरकार ने घोषणा की है कि जब तक सरकार द्वारा रिपोर्ट स्वीकार नहीं कर ली जाती, तब तक भर्ती के लिए कोई नई अधिसूचना नहीं की जाएगी।
कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एच.के. पाटिल ने मंत्रिमंडल के बाद पत्रकारों को बताया कि मंत्रिमंडल ने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त करने और उठाए जाने वाले अगले कदमों पर सिफारिशें मांगने पर सहमति व्यक्त की है। हम आयोग से तीन महीने के भीतर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने के लिए कहेंगे। तब तक सार्वजनिक रोजगार के लिए कोई नई अधिसूचना जारी नहीं की जाएगी।
मंत्रिमंडल का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के मद्देनजर आया है, जिसमें अनुभवजन्य आंकड़ों के आधार पर आंतरिक आरक्षण देने का फैसला राज्यों पर छोड़ दिया गया है।
वामपंथी धड़ों की ओर से आंतरिक आरक्षण की मांग करीब चार दशक पुरानी मांगआई है। इस धड़े को लगता है कि पिछड़ेपन और अस्पृश्यता के मुद्दों के बावजूद आरक्षण ने उनकी मदद नहीं की है।
दलित दक्षिणपंथी धड़े से ताल्लुक रखने वाले समाज कल्याण मंत्री एच.सी. महादेवप्पा ने पत्रकारों से कहा, अगर दलित वामपंथ, दलित दक्षिणपंथी, भोवी और लम्बानी समुदायों को आंतरिक आरक्षण दिया जाना है, तो इसके लिए मजबूत अनुभवजन्य आंकड़ों की जरूरत होगी।
एकजुटता दिखाने के लिए दलित वामपंथ और दलित दक्षिणपंथी धड़ों के कैबिनेट मंत्री जिनमें प्रियांक खरगे, केएच मुनियप्पा, आरबी तिम्मापुर और शिवराज तंगड़गी के अलावा ए. आंजनेया और एल. हनुमंतय्या भी मौजूद थे।
Published on:
28 Oct 2024 10:59 pm
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