केपीएल के फायनल में 20 लाख रुपए लेकर धीमी बल्लेबाजी करने के आरोप में बल्लारी टस्कर्स के दो खिलाडिय़ों की गिरफ्तारी के बाद यह बात उठ रही है कि टीमों के मालिक और खिलाडिय़ों की नीलामी प्रकिया को लेकर साफ नियम कायदे क्यों नहीं बनाए गए?
केपीएल के संबंध में एक अहम बात यह उजागर हुई है कि बल्लारी टस्कर्स और लीग की अन्य टीमों के लिए बीसीसीआई या कर्नाटक क्रिकेट संघ की ओर से आधिकारिक तौर पर कोई नीलामी का आयोजन नहीं किया गया था और इन टीमों को खुली नीलामी के जरिये खरीदा गया था। एसीयू का मानना है कि अब इसका परीक्षण करना आवश्यक है।
कुछ सुझाव यह भी आए कि फ्रेंचाइजी का पुलिस वैरिफिकेशन कराया जाना चाहिए। किसी भी प्रकार के आपराधिक या संदिग्ध रेकॉर्ड वाले लोगों को लीग में किसी भी तरह तरह से भागीदारी करने से रोका जा सके। हालांकि इस सुझाव का विरोध करने वालों का दावा है कि यह एक अच्छा विकल्प नहीं है क्योंकि इसके परिणाम मिलने कठिन हैं। कोई संदिग्ध रेकॉर्र्ड वाला व्यक्ति किसी और का चेहरा सामने लाकर अपना काम निकाल सकता है।
वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि राज्यों को लीग कराने से रोकना इस समस्या का समाधान नहीं है। लीगों को बंद कराने के बजाय सिस्टम को दुरुस्त किया जाना चाहिए। इसके लिए बीसीसीआइ ने पुलिस के साथ मिल कर काम करने का निर्णय किया है ताकि सट्टेबाजी के नापाक जाल को तोड़ा जा सके। बीसीसीआई के अधिकारियों को कहना है कि राज्य के संघ की मदद से पूरी जानकारी पुलिस को दी जा रही है ताकि इस गठबंधन की जड़ पर प्रहार करने का ताना बाना बुना जा सके।
खेल में भ्रष्टाचार रोकने के लिए समुचित कानून नहीं कुछ जानकारों का सुझाव है कि मैच फिक्सिंग और सटटेबाजी के मामलों में कार्रवाई के लिए समुचित कानून की कमी है। फिलहाल ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता के तहत ही कार्रवाई की जाती है लेकिन इसके लिए अलग से कानून बनाने का यह सही समय होगा। बीसीसीआई ने इस सुझाव को भी पाइपलाइन में डाल रखा है और उम्मीद की जा रही है कि जल्दी ही इस संबंध में कोई निर्णय किया जाएगा। खेलों में भ्रष्टाचार को लेकर नए कानून बनाने के पैरोकार मानते हैं कि कई देशों में ऐसा पहले से है और भारत को भी ऐसा करने में गुरेज नहीं करना चाहिए। इसके निश्चित तौर पर अच्छे परिणाम मिलेंगे।