उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश एल. नारायण स्वामी एवं न्यायाधीश दिनेश कुमार की पीठ ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता और पीड़ा व्यक्त करते हुए राज्य सरकार को इसे गंभीरता से लेने का निर्देश देते हुए कहा कि मालवाहक वाहनों का यात्री परिवहन के लिए इस्तेमाल खुलेआम हो रहा है। बावजूद इसके इस पर राज्य सरकार के पास अब तक कोई कार्य योजना नहीं है। कर्नाटक राज्य विधि सेवा प्राधिकरण (केएसएलएसए) की ओर से दायर जनहित याचिका दायर की गई थी।
पीआइएल में कोर्ट से आग्रह किया गया था कि वह मालवाहक वाहनों में यात्रियों को ढोने पर रोक लगाने के लिए आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करे। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि माल वाहक वाहनों में यात्रियों को ढोने से यह महिलाओं, बच्चों और श्रमिकों के जीवन के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
याचिकाकर्ता ने राज्य भर में बच्चों, महिलाओं, श्रमिकों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के लिए पर्याप्त, सस्ती और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन के प्रावधान को सुनिश्चित करने के लिए राज्य से दिशा-निर्देश भी मांगे थे। पिछली सुनवाई में अदालत के निर्देशों के बाद, श्रम आयुक्त, परिवहन और सडक़ सुरक्षा आयुक्त और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध और तकनीकी सेवा विंग) अदालत में उपस्थित थे।
इस बीच, राज्य सरकार के अधिवक्ता ने न्यायालय को बताया कि पिछले वर्ष माल वाहक वाहनों में यात्रियों को ढोने पर ऐसे वाहनों के खिलाफ २८ हजार ९१४ मामले दर्ज किए गए और इनमें से ९८६ ऐसे मामले थे जिसमें आरोपी ने दूसरी बार या उससे अधिक बार इसी प्रकार का उल्लंघन किया था। महाधिवक्ता ने अदालत को आश्वासन दिया कि इस मामले को सर्वोच्च प्राथमिकता पर लिया जाएगा और तत्काल कार्रवाई की योजना तैयार की जाएगी और इस संबंध में आगे के निर्देशों के लिए अदालत में पेश किया जाएगा।
अदालत ने माना कि माल वाहक वाहनों में यात्रियों को ढोने के मामले को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर समाधान किया जाना चाहिए क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) का उल्लंघन होने के साथ ही जबरन श्रम कराने का मामला है। बाद में मामले की अगली सुनवाई ३ जून तक के लिए टाल दी गई।