script89 साल में पीएचडी कर रहे शरणबसवराज बने प्रेरणास्रोत | Suranbaswaraj, who has made PhD in 89 years | Patrika News

89 साल में पीएचडी कर रहे शरणबसवराज बने प्रेरणास्रोत

locationबैंगलोरPublished: Sep 09, 2018 09:35:00 pm

कहते हैं सीखने और पढऩे की कोई उम्र नहीं होती। स्वतंत्रता सेनानी और अध्यापक रह चुके 89 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता शरण बसवराज बिसरहल्ली इसे सार्थक करते हुए इस उम्र में कन्नड़ साहित्य में पीएचडी की तैयारी में हैं।

89 साल में पीएचडी कर रहे शरणबसवराज बने प्रेरणास्रोत

89 साल में पीएचडी कर रहे शरणबसवराज बने प्रेरणास्रोत

बेंगलूरु. कहते हैं सीखने और पढऩे की कोई उम्र नहीं होती। स्वतंत्रता सेनानी और अध्यापक रह चुके 89 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता शरण बसवराज बिसरहल्ली इसे सार्थक करते हुए इस उम्र में कन्नड़ साहित्य में पीएचडी की तैयारी में हैं। शरणबसवराज संभवत: राज्य के सबसे उम्रदराज अभ्यर्थी हैं जो पीएचडी प्रवेश परीक्षा दे रहे हैं।

विभिन्न विषयों पर १५ किताबें लिख चुके शरणबसवराज ने कानून में डिग्री हासिल करने के अतिरिक्त कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़ और हम्पी कन्नड़ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की है। बावजूद इसके उनकी शिक्षा हासिल करने की प्यास बरकरार है और अब वे ८९ वर्ष में अपना ज्ञानवर्धन कर रहे हैं।


शरणबसवराज का कहना है कि उनके जीवन का मकसद सदैव विद्यार्थी बनकर ज्ञान अर्जित करना है। सीखने की कोई उम्र नहीं होती है और जब भी अवसर मिले ज्ञान अर्जन करना चाहिए। इसलिए अपनी उम्र की परवाह किए बगैर वे पीएचडी करने की तैयारी में लगे हैं। अपनी विनम्रता का परिचय देते हुए वे कहते हैं कि अगर मैं पीएचडी प्रवेश परीक्षा में सफल हो जाता हूं तो मैं एक सहायक खोजूंगा जो मुझे कन्नड़ में लयबद्ध लेखन के रूप में वचन साहित्य की पढ़ाई पूरी करने में मदद करे। अपने व्यक्तित्व की भांति ही अपने शोध का विषय भी उन्हें आकर्षक चुना है और वे पुरातन ग्रंथ ‘वचन साहित्य’ से पीएचडी हासिल करने की मंशा रखते हैं।


वर्ष १९२९ में पैदा हुए शरणबसवराज अपने जीवन काफी संतोषप्रद हैं। उन्होंने कहा कि पढऩे लिखने में मेरी रुचि का कारण मेरी मां रही हैं और मैंने बाद में अपने छह बच्चों को भी उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए प्रेरित किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के हैदराबाद स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाले शरणबसवराज ने इंटनमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोप्पल जिले के सरकारी स्कूल में शिक्षक के रूप में सेवा देनी शुरू की।
हैरत की बात है कि १९९१ में शिक्षक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने कानून में अपनी डिग्री हासिल की।


इसी प्रकार कन्नड़ से स्नातकोत्तर करते हुए जब कर्नाटक विश्वविद्यालय से उन्हें मात्र ५५ प्रतिशत अंकों के साथ सफलता मिली तब उन्होंने बाद में हम्पी के कन्नड़ विश्वविद्यालय से एम.ए. करने की ठानी और ६६ प्रतिशत अंकों के साथ सफल हुए। अब उम्र के इस पड़ाव पर एक बार फिर पीएचडी के लिए प्रयासरत शरणबसवराज एक नई प्रेरणा दे रहे हैं।

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