दरअसल, चर्चा सिर्फ एच-1 बी वीजा ही नहीं, बल्कि पढ़ाई के लिए जाने वाले छात्रों और कार्य-अधिकरण वीजा पर भी अस्थायी पाबंदी लगाने की है। हालांकि, प्रस्ताव अभी अस्पष्ट है लेकिन, रिपोर्टों में कहा गया है कि 1 अक्टूबर से शुरू होने वाले नए वित्तीय वर्ष के दौरान इस तरह के वीजा जारी किए जाते हैं और सरकार उसी समय यह फैसला कर सकती है। अगर एच 1 बी वीजा के निलंबन का निर्णय अमरीका करता है तो प्रभावित होने वाले देशों में भारत प्रमुख है। क्योंकि, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी पेशेवर इस वीजा की सबसे ज्यादा मांग करने वालों में से हैं।
अमरीका के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021 के लिए लगभग 2 लाख 75 हजार एच 1 बी वीजा के आवेदन आए हैं। इनमें से लगभग 67 फीसदी वीजा आवेदन अकेले भारत से गए हैं। अभी वहां लगभग 5 लाख प्रवासी कर्मचारी एच-1 बी वीजा पर काम कर रहे हैं। लेकिन, कोविड-19 के कारण अमरीका में अप्रेल महीने के दौरान ही लगभग 2.5 करोड़ रोजगार छीन गए। अब अमरीकी कानून निर्माता ट्रंप प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि अगले वर्ष तक या रोजगार की स्थिति सामान्य होने तक अस्थायी कार्य के लिए जारी किया जाने वाला वीजा निलंबित किया जाना चाहिए। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश वीजा अमरीकी कंपनियों को ही मिलता है और इसलिए ऐसा फैसला करना अमरीका के लिए काफी मुश्किल होगा। केवल भारतीय आइटी कंपनियां ही एच-1 बी वीजा पर निर्भर नहीं है। अमरीका की गूगल, माइक्रसॉफ्ट, फेसबुक जैसी दिग्गज कंपनियों की निर्भरता भी इसपर है।
भारतीय आइटी उद्योगों पर असर की संभावना कम: मोहनदास पै
इंफोसिस के पूर्व निदेशक मोहनदास पै ने कहा कि ट्रंप जो कह रहे हैं उसे लागू करना बहुत मुश्किल है। एच-1 बी वीजा अधिकतर अमरीकी कंपनियों को ही मिलता है। भारतीय कंपनियों को तो हर वर्ष करीब 10 से 15 हजार ही एच-1 बी वीजा मिलता है। अमरीकी कंपनियां चाहती हैं कि पूरी दुनिया के प्रतिभाशाली युवा वहां जाकर काम करें। इसलिए ज्यादातर ऐसे वीजा उन्हीं के खाते में जाते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्क फ्रॉम होम होने से भी वीजा का महत्व कम होगा। कार्यस्थल पर अब पेशेवर काफी कम जा रहे हैं। अगले एक साल तक कोई भी आमने-सामने बैठकर मीटिंग नहीं करना चाहता है। बैठकें वर्चुअल हो रही हैं। अगर, वीजा निलंबित करने का निर्णय अमरीका करता है तो उसका उलटा असर उसी पर पड़ेगा।
इंफोसिस के पूर्व निदेशक मोहनदास पै ने कहा कि ट्रंप जो कह रहे हैं उसे लागू करना बहुत मुश्किल है। एच-1 बी वीजा अधिकतर अमरीकी कंपनियों को ही मिलता है। भारतीय कंपनियों को तो हर वर्ष करीब 10 से 15 हजार ही एच-1 बी वीजा मिलता है। अमरीकी कंपनियां चाहती हैं कि पूरी दुनिया के प्रतिभाशाली युवा वहां जाकर काम करें। इसलिए ज्यादातर ऐसे वीजा उन्हीं के खाते में जाते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्क फ्रॉम होम होने से भी वीजा का महत्व कम होगा। कार्यस्थल पर अब पेशेवर काफी कम जा रहे हैं। अगले एक साल तक कोई भी आमने-सामने बैठकर मीटिंग नहीं करना चाहता है। बैठकें वर्चुअल हो रही हैं। अगर, वीजा निलंबित करने का निर्णय अमरीका करता है तो उसका उलटा असर उसी पर पड़ेगा।
आइटी विशेषज्ञों का कहना है कि संभवत: अमरीका में चुनाव आ रहे हैं और ट्रंप ये दिखना चाहते हैं कि वे युवाओं की रोजगार की चिंता कर रहे हैं। वर्ष 2008 में भी ऐसी परिस्थितियां आई थीं और एच-1 बी वीजा निंलबित करने की बातें हो रही थीं। लेकिन, कुछ ही महीनों में सबकुछ सामान्य हो गया।