चिकित्सकों का कहना है कि कोविड के लक्षण के बावजूद जांच में निगेटिव आने वाले कोरोना के संदिग्धों की जांच में हाई रेजोल्यूशन कम्प्यूटेड टोमोग्राफी (एचआरसीटी) टेस्ट महत्वपूर्ण हो गया है। जांच में फेफड़े में संक्रमण का पता चल रहा है। साथ ही संक्रमण कितना अधिक है, इसका पता चलने से मरीज के उपचार में एचआरसीटी टेस्ट काफी उपयोगी साबित हो रही है।
विशिष्ट कोविड-19 रिपोर्टिंग एंड डेटा (सीओआरएडी) स्कोर ऐसे मामलों की गंभीरता तय करती है। स्कोर छह होने पर मरीज को कोरोना वायरस से गंभीर रूप से संक्रमित माना जाता है। उपचार में देरी से मरीज की हालत बेहद गंभीर हो सकती है। वायरल लोड बढऩे से लंग फाइब्रोसिस का खतरा है।
चिकित्सकों का कहना है कि आरटी-पीसीआर परीक्षण की संवेदनशीलता करीब 70 फीसदी है। सैंपल लेने के तरीकों पर भी रिपोर्ट निर्भर करती है।
गत वर्ष फॉल्स निगेटिव मामले बढऩे से प्रदेश सरकार ने 25 अक्टूबर को परिपत्र जारी कर सीटी थोरेक्स स्कोर सहित नैदानिक व लैब परीक्षण के आधार पर ऐसे मरीजों के उपचार के निर्देश दिए थे। लेकिन कई निजी चिकित्सकों का कहना है कि कोविड रिपोर्ट निगेटिव होने के कारण ऐसे मरीज सरकारी उपचार से वंचित हैं।
प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स एसोसिएशन (पीएचएएनए) के अध्यक्ष डॉ. एच. एम. प्रसन्ना ने बताया कि सीओआरएडी स्कोर ज्यादा होने के बावजूद ऐसे मरीजों को कोविड पेशेंट नंबर से वंचित रहना पड़ रहा है। सरकारी कोटे के बिस्तर ऐसे मरीजों की पहुंच से बाहर हैं।