आज न छोटा परिवार वाला सुखी है न बड़े परिवार वाला
बेंगलूरु. जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि जो आत्माएं गुणवान हैं, वो ही परम सुखी हैं। सुखी बनने के लिए सरकार ने नारा दिया है, छोटा परिवार सुखी परिवार, परंतु संसार में न तो छोटा परिवार वाला सुखी है न ही बड़े परिवार वाला। वे गोडवाड भवन में नौ दिवसीय नवपद ओली के शुभारंभ अवसर पर भक्तों को संबोधित कर रहे थे। जैनाचार्य ने कहा कि जैन शासन में सुखी बनने के लिए गुणवान बनने का उपाय बताया गया है। जो गुणवान है, उसे प्रतिकूलता का द्वेष नहीं है और अनुकूलता का राग भी नहीं है। ऐसे वीतराग ही सच्चे सुखी हंै। आचार्य के प्रवचन प्रतिदिन सुबह 9.30 व सायं 4 बजे होंगे। रविवार को सुबह 9 बजे त्यागराजनगर के पाठशाला के बच्चों द्वारा ‘तिलक मंजरीÓ नाटिका प्रस्तुत की
जाएगी।
बेंगलूरु. जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि जो आत्माएं गुणवान हैं, वो ही परम सुखी हैं। सुखी बनने के लिए सरकार ने नारा दिया है, छोटा परिवार सुखी परिवार, परंतु संसार में न तो छोटा परिवार वाला सुखी है न ही बड़े परिवार वाला। वे गोडवाड भवन में नौ दिवसीय नवपद ओली के शुभारंभ अवसर पर भक्तों को संबोधित कर रहे थे। जैनाचार्य ने कहा कि जैन शासन में सुखी बनने के लिए गुणवान बनने का उपाय बताया गया है। जो गुणवान है, उसे प्रतिकूलता का द्वेष नहीं है और अनुकूलता का राग भी नहीं है। ऐसे वीतराग ही सच्चे सुखी हंै। आचार्य के प्रवचन प्रतिदिन सुबह 9.30 व सायं 4 बजे होंगे। रविवार को सुबह 9 बजे त्यागराजनगर के पाठशाला के बच्चों द्वारा ‘तिलक मंजरीÓ नाटिका प्रस्तुत की
जाएगी।
अनंत पुण्य के स्वामी हैं अरिहंत परमात्मा
बेंगलूरु. वीवीपुरम सीमंधर शांतिसूरि आराधना भवन में आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर ने नवपद में प्रथम अरिहंत पद पर प्रवचन में कहा कि अनंत पुण्य के स्वामी अरिहंत परमात्मा हैं। अरिहंत परमात्मा करुणा के सागर हैं। हृदय में करुणा न हो वह अरिहंत नहीं बन सकता। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हमारा हृदय करुणाहीन हो गया है। स्वार्थ भाव इतना है कि हमें अपने आप के अलावा कोई दिखता ही नहीं। आचार्य विजय ने कहा कि अरिहंत परमात्मा के हृदय में जगत के समस्त जीवों के प्रति करुणा भाव ेहै। तभी अर्हदु तत्व का प्राकट्य होता है। दूसरों की चिंता, दूसरों के प्रति सहानुभूति हो, फिर चाहे वह शत्रु अपना शत्रु ही क्यों न हो।
बेंगलूरु. वीवीपुरम सीमंधर शांतिसूरि आराधना भवन में आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर ने नवपद में प्रथम अरिहंत पद पर प्रवचन में कहा कि अनंत पुण्य के स्वामी अरिहंत परमात्मा हैं। अरिहंत परमात्मा करुणा के सागर हैं। हृदय में करुणा न हो वह अरिहंत नहीं बन सकता। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हमारा हृदय करुणाहीन हो गया है। स्वार्थ भाव इतना है कि हमें अपने आप के अलावा कोई दिखता ही नहीं। आचार्य विजय ने कहा कि अरिहंत परमात्मा के हृदय में जगत के समस्त जीवों के प्रति करुणा भाव ेहै। तभी अर्हदु तत्व का प्राकट्य होता है। दूसरों की चिंता, दूसरों के प्रति सहानुभूति हो, फिर चाहे वह शत्रु अपना शत्रु ही क्यों न हो।
आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ
बेंगलूरु. विजयनगर जैन स्थानक में जयधुरन्धर मुनि के सान्निध्य में शुक्रवार को नवपद आयंबिल ओली तप की आराधना शुरू हुई।
मुनि ने आयंबिल के महत्व को समझाते हुए कहा कि यह एक ऐसा तप है, जो आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ प्रदाता है। इस तप को श्रेष्ठ तपों में गिना जाता है। आयंबिल करने से कर्मों की निर्जरा तो होती ही है, साथ ही रसनेन्द्रिय पर भी निग्रहण होता है। आराधक स्वाद पर विजय प्राप्त कर लेता है। आयंबिल में एक साथ अनशन, ऊनोदरी और रस परित्याग तीन तप जुड़े हैं। जयकलश मुनि ने श्रीपाल चारित्र का सरस काव्य शैली में वाचन प्रारंभ किया, जिसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। संघ अध्यक्ष घेवरचंद कटारिया ने बताया कि ६५ से अधिक भाई-बहनों ने आयंबिल
तप किया।
बेंगलूरु. विजयनगर जैन स्थानक में जयधुरन्धर मुनि के सान्निध्य में शुक्रवार को नवपद आयंबिल ओली तप की आराधना शुरू हुई।
मुनि ने आयंबिल के महत्व को समझाते हुए कहा कि यह एक ऐसा तप है, जो आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ प्रदाता है। इस तप को श्रेष्ठ तपों में गिना जाता है। आयंबिल करने से कर्मों की निर्जरा तो होती ही है, साथ ही रसनेन्द्रिय पर भी निग्रहण होता है। आराधक स्वाद पर विजय प्राप्त कर लेता है। आयंबिल में एक साथ अनशन, ऊनोदरी और रस परित्याग तीन तप जुड़े हैं। जयकलश मुनि ने श्रीपाल चारित्र का सरस काव्य शैली में वाचन प्रारंभ किया, जिसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। संघ अध्यक्ष घेवरचंद कटारिया ने बताया कि ६५ से अधिक भाई-बहनों ने आयंबिल
तप किया।