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अब महज 100 रुपये के खर्च में लग सकेगा टीबी का पता

locationबैंगलोरPublished: Dec 15, 2019 06:47:27 pm

Submitted by:

Saurabh Tiwari

आविष्कार : भाविसं की शोधार्थी ने बनाया प्लास्टिक और कागज आधारित किफायती जांच उपकरण

अब महज 100 रुपये के खर्च में लग सकेगा टीबी का पता

अब महज 100 रुपये के खर्च में लग सकेगा टीबी का पता

निखिल कुमार/बेंगलूरु. यक्ष्मा (टीबी) रोग का पता अब काफी कम खर्च और समय में लगाना संभव हो सकेगा। देश में टीबी से मरने वाले मरीजों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। ऐसे में टीबी की जांच का यह सस्ता तरीका इसके नियंत्रण में मददगार साबित हो सकता है।
भारतीय विज्ञान संस्थान (भाविसं) की एक शोधार्थी ने तरल पदार्थ में टीबी जांच को किफायती और त्वरित बनाने का दावा किया है। कागज और प्लास्टिक से निर्मित कम लागत वाला यह उपकरण तरल नमूनों में टीबी डीएनए की उपस्थिति का पता करीब 80 मिनट में लगाने में सक्षम है। इस उपकरण को कहीं भी ले जाया जा सकता है। यह इतना छोटा है कि हथेली में समा जाए। इससे जांच का खर्च करीब 100 रुपए आएगा।
डॉ. भूषण जे. टोले के मार्गदर्शन में शोध कर रही नवजोत कौर ने एफएलआइपीपी-एनएएटी (फ्लोरोसेंस आइसोथर्मल पेपर एंड प्लास्टिक- न्यूक्लिक एसिड एम्प्लीफिकेशन टेस्ट) नामक उपकरण बनाया है। नवजोत ने बताया कि आम तौर पर डीएनए आधारित एनएएटी से टीबी की पुष्टि होती है। एनएएटी विशेष रूप से दूरदराज और पिछड़े क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं है। एनएएटी महंगा होने के साथ ही बुनियादी सुविधाओं पर आधारित है।
ऐसे में टीबी जांच के लिए किफायती उपकरण की जरूरत है। नए उपकरण का परीक्षण तमिलनाडु के वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के 30 मरीजों की जांच के लिए किया गया जो शत-प्रतिशत सफल रहा। इस उपकरण के विकास के लिए वर्ष 2017 से शोध चल रहा है। मरीज को अगर टीबी है तो यह उपकरण शत-प्रतिशत सटीकता से इसकी पुष्टि करता है। लेकिन, डॉ. टोले और नवजोत के सामने एक बड़ी चुनौती भी है।
फेफड़ों की अन्य बीमारी हो तो यह उपकरण करीब 31 फीसदी मामलों में टीबी की गलत रिपोर्ट (फॉल्स पॉजिटिव रिजल्ट) भी दे रहा है, जिसे दूर करने पर शोध जारी है। वरना यह उपकरण विशेष कर दुर्गम क्षेत्रों के लिए काफी कारगर है, जहां टीबी जांच की सुविधा के साथ-साथ विशेषज्ञ चिकित्सकों और जीन एक्सपर्ट मशीनों की भारी कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार देश में करीब तीन हजार जीन एक्सपर्ट मशीनें ही हैं।
ऐसे करता है काम
एफएलआइपीपी-एनएएटी एक ऐसा उपकरण है, जिसमें दो तरफा दबाव के प्रति संवेदनशील गोंद से ऐक्रेलिक (पारदर्शी प्लास्टिक सामग्री) शीट्स की कई परतें एक दूसरे से चिपकाई जाती हैं।

परतों को इस तरह चिपकाया जाता है कि बीच में जगह हो, जहां छोटा सा ग्लास फाइबर ***** लगाया जा सके। टीबी का पता लगाने के लिए रासायनिक अभिक्रिया इस पेपर ***** के भीतर होती है। ***** में सूखे अभिकर्मक (वह पदार्थ या यौगिक जो किसी तंत्र में रासायनिक अभिक्रिया उत्पन्न करने के लिए मिश्रित किया जाता है) और फ्लोरोसेंस होते हैं। बलगम के तरलीकृत डीएनए को सैंपल ***** में रखकर उसे करीब एक घंटे के लिए इनक्यूबेटर (ऊष्मानियंत्रक) में रखा जाता है।
इसके बाद ऊपरी सतह को छील कर फ्लोरोसेंट सामग्री डाली जाती है। यूवी किरणें टीबी बैक्टीरिया संक्रमित नमनूों में हरे रंग के फ्लोरोसेंट को सक्रिय कर देती हैं। कम लागत वाले अल्ट्रा वॉयलेट टॉर्च के इस्तेमाल से फ्लोरोसेंट प्रतिक्रिया को पढ़ा जाता है। एफएलआइपीपी-एनएएटी में सफेद घेरे होते हैं। जांचे जा रहे नमूने में टीबी का बैक्टीरिया हो तो घेरे के बीच का हिस्सा हरा हो जाता है। मोबाइल कैमरे से रिपोर्ट की फोटो निकालते हैं। मात्रात्मक सॉफ्टवेयर की मदद से संक्रमण के चरण का पता लगाया जाता है।
स्क्रीनिंग उपकरण के रूप में इस्तेमाल
डीएनए तक पहुंचने के लिए कोशिकाओं को तोडऩा पड़ता है, जिसे सैंपल प्रोसेसिंग (नमूना प्रसंस्करण) कहते हैं। टीबी के लिए मोटे और चिपचिपे बलगम की जांच होती है, जिसे तरल पदार्थ में बदलना होता है। स्व अनुसंधान क्षेत्र में टीबी कोशिकाओं को तोडऩा बड़ी चुनौती है। अब तक जो जांच हुए हैं उसमें पहले से तरलीकृत नमूनों का इस्तेमाल हुआ है। लैब में ही नमूनों का द्रवीकरण हो सके, इस पर शोध जारी है। इससे बेहद कम लागत में टीबी की जांच हो सकेगी। लैब में पीसीआर मशीन नहीं होने पर एफएलआइपीपी-एनएएटी से टीबी की जांच की जा सकती है। फिलहाल इसे सिर्फ एक स्क्रीनिंग उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
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