जीने की कला जिसको आ गई वह दुखों से मुक्त हो गया
बैंगलोरPublished: Oct 21, 2019 08:15:39 pm
गणेशबाग में 21 दिवसीय श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव की आराधना
जीने की कला जिसको आ गई वह दुखों से मुक्त हो गया
बेंगलूरु. गणेशबाग में 21 दिवसीय श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव की आराधना में उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा कि दु:खों से मुक्त और सुखमय जीवन जीवने के लिए परमात्मा द्वारा समाचारी के दस सूत्र दिए गए हैं। इस अध्याय में ज्ञान, ध्यान, तप नहीं बल्कि इस संसार में कैसे रहना इसके दस नियम बताए गए हैं। स्वयं के साथ कैसे रहना है इसको साधना कहते हैं। जिनके साथ जीते हैं उनके साथ कैसे रहना उसको समाचारी कहते हंै। दुनिया में कैसे रहना कि सारे दु:खों का नाश हो जाए। संसार में कैसे जीना इसकी कला जिसको आ गई वह दु:खों से मुक्त हो जाता है। हम जिनके साथ रहते हैं उनके साथ कैसे रहना चाहिए, परिवार के साथ, संघ के साथ, साथियों के साथ स्नेहीजनों के साथ व्यवहार कैसा होना चाहिए। ये व्यवहार की कला भी आ गई तो जीवन आनंदमय बन जाता है। जब हम अपने साथ रहने वालों के साथ सही तरीके से नहीं रह पाते हैं तो वहां से एक वैर की धारा बहने लग जाती है और उस दुश्मनी की धारा में ही सारे कर्मों का बंध होते चला जाता है। वैर का बंध स्वयं के साथ नहीं होता है वह दूसरों के साथ होता है। ये इसलिए होता है कि परमात्मा ने जो दस सूत्र दिए हैं वह हम जान नहीं पाते हंै, कर नहीं पाते हैं। इन दस सूत्रों को जीवन में जीवना सीख लिया तो किसी के साथ दुश्मनी संघर्ष नहीं होगा, विरोध नहीं होगा। जब संघर्ष और विरोध नहीं होगा तो सहयोग मानव का स्वभाव है। परस्पर में उपकार का करना सहयोग करना जीव का स्वभाव है। संघर्ष की धारा समाप्त होते ही सहयोग शुरू हो जाता है। परिवार संघ समाज में शांति की अनुभूति चाहिए तो इन नियमों की पालना करनी होगी।
उन्होंने कहा कि जो अंदर में होता है वहीं अनुभूति में होता है। जो भावों में होता है वही भगवान होता है। अनादिकाल काल के वैर को बंध को समाप्त करने के लिए परमात्म स्वरूप की प्राप्ति करने के लिए तीर्थंकर परमात्मा द्वारा दिये गये सिद्धांतों का अनुसरण करेंगे और उनके चरणों में समर्पित होंगे तो उनके वरदान जरूर प्राप्त हो जाते हैं।