
साध्वी डॉ. हेमप्रभा ‘हिमांशु’ ने कहा कि निज विवेक का ज्ञान का सम्मान नहीं करने से उसे नहीं मानने से व्यक्ति दुखी होता है। वही मानव के दुखी होने का दूसरा सबसे बड़ा कारण है जो प्राप्त है उसमें पर्याप्त संतुष्टि का भाव नहीं होकर और अधिक उस वस्तु को पाने की लालसा करना यह सोच भी व्यक्ति को संसार में दुखी बनाती है। आज के मानव के पास सब हैं किंतु सब्र नहीं है। हर कोई संसार में शांति की कामना करता है अपने जीवन में सुख शांति समृद्धि चाहता है पर वह अपनी व्यर्थ की इच्छाओं आकांक्षाओं को खत्म नहीं करता। धर्मसभा का संचालन जय ब्रज मधुकर अर्चना चातुर्मास समिति के महामंत्री मनोहरलाल लुकड़ ने किया। शनिवार को नेत्र परीक्षण शिविर एवं रविवार को होने वाले युवा चिंतन शिविर सम्मेलन की भी विस्तार से जानकारी दी।