असली खुशी तो प्रभु भक्ति में ही है लेकिन जब तक वह यह समझ पाता है तब तक उसके जीवन का अधिकतर समय निकल चुका होता है। ईश्वर की असली प्रार्थना का सार सत्य में छिपा है। सत्य के बिना हम भगवान को प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि सत्य ही भगवान हैं। प्रार्थना में लीन होकर ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
जिस इंसान में काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह होता है, वह कभी भी ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता।
आचार्य ने कहा कि भक्ति में डुबकी लगाकर और गहराई में जाकर ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है, अध्यात्म इसका एकमात्र मार्ग है। सच्ची प्रसन्नता हमारे शांत मन और मस्तिष्क से निर्गत होती है जो किसी भी बाहरी कर्ता पर निर्भर नहीं करती। ऐसा व्यक्ति हर स्थिति में अविचलित रहता है।
आचार्य ने कहा कि भक्ति में डुबकी लगाकर और गहराई में जाकर ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है, अध्यात्म इसका एकमात्र मार्ग है। सच्ची प्रसन्नता हमारे शांत मन और मस्तिष्क से निर्गत होती है जो किसी भी बाहरी कर्ता पर निर्भर नहीं करती। ऐसा व्यक्ति हर स्थिति में अविचलित रहता है।
जो व्यक्ति पूरी ईमानदारी से ईश्वर के प्रति समर्पित नहीं है, उसे अपने जीवन में भगवान से भी कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। बुरे मन-मस्तिष्क और विचार वाले व्यक्तियों पर ईश्वर के आशीर्वाद का प्रकाश नहीं पड़ता।