दरअसल, 26 हजार मेगावाट के
चार सोलर पार्क व 6 हजार मेगावाट के सोलर प्रोजेक्ट पश्चिमी राजस्थान में
प्रस्तावित है, जहां से दूसरे राज्यों तक बिजली भेजने के लिए प्रसारण तंत्र
का विस्तार एक बड़ी चुनौती बन रहा था। रिसर्जेंट राजस्थान से ठीक पहले
पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (पीजीसीआईएल) व ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के
दूसरे फेज के अनुबंध (पश्चिमी राजस्थान को जोडऩा) से दिक्कतें दूर होती
नजर आ रही है।
पीजीसीआईएल करेगा 10 हजार करोड़ निवेश
बनास
काटा (गुजरात) से मोगा (पंजाब) तक बन रहे ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर फेज-1 के
तहत चित्तौडग़ढ़, अजमेर व बीकानेर में 765 केवी के जीएसएस बनने हैं। सरकार
ने 15 अक्टूबर को पीजीसीआईएल से समझौता कर कॉरिडोर के दूसरे फेज को हरी
झण्डी दे दी। पीजीसीआईएल करीब 10 हजार करोड़ रु. निवेश करेगा।
बचेंगे 1 रु/यूनिट तक
राजस्थान
में ग्रीन कॉरिडोर न होने के चलते सौर ऊर्जा दूसरे राज्यों में देने के
लिए ट्रांसमिशन चार्ज के प्रति यूनिट 50 पैसे से अधिक तक देने पड़ते हैं।
इसके अलावा लाइन लोसेज भी निवेशक के जिम्मे है। ऐसे में सौर ऊर्जा की लागत
और बढ़ जाती है। ये दोनों चार्ज ने देने पड़े तो निवेशकों को दूसरे राज्यों
में बिजली बेचने में लाभ मिलेगा।
कॉरिडोर फेज वन
बनास काटा (गुजरात)-चित्तौडग़ढ़-अजमेर-बीकानेर-मोगा(पंजाब)
कॉरिडोर फेज टू
भाडला (जोधपुर)-परेवर (जैसलमेर)-फतेहगढ़ (जैसलमेर)-नोख (जैसलमेर)-पूंगल (बीकानेर)
राजस्थान
के पश्चिमी जिलों में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएं है। इस को ध्यान में
रखते हुए पीजीसीआईएल से ग्रीन कॉरिडोर का दायरा बढ़ाने के लिए समझौता किया
गया है। कॉरिडोर के जोधपुर, जैसलमेर जिले से जुडऩे से प्रस्तावित सोलर
पार्क व अन्य दूसरे प्रोजेक्ट्स को काफी फायदा मिलेगा।
बी.के.दोसी, प्रबन्ध निदेशक, राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम