scriptअनासक्ति की चाबी है अनित्य भावना | The key to dissonance is the perpetual emotion | Patrika News

अनासक्ति की चाबी है अनित्य भावना

locationबैंगलोरPublished: Nov 10, 2018 04:04:15 pm

Submitted by:

Ram Naresh Gautam

अनित्य भावना का विवेचन करते हुए कहा कि जीवन, शरीर, परिवार, रूप, धन-सब अस्थाई है।

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अनासक्ति की चाबी है अनित्य भावना

बेंगलूरु. जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में महावीर धर्मशाला में 12 प्रकार की भावनाओं की प्रवचन शृंखला का प्रारंभ करते हुए जयधुरंधर मुनि ने प्रथम अनित्य भावना का विवेचन करते हुए कहा कि जीवन, शरीर, परिवार, रूप, धन-सब अस्थाई है।
जो कुछ भी बना है, वह नष्ट होगा ही, फूल जो खिला है, वो मुरझाएगा ही। द्रव्य चाहे ध्रुव रहे, लेकिन उसका पर्याय बदलते रहने के कारण वो पदार्थ अनित्य कहलाता है।

इसीलिए कहा जाता है कि परिवर्तन जीवन का अटल नियम है। वृक्ष की विभिन्न अवस्था के समान जिंदगी की अवस्थाएंं होती हैं।
अंकुर सम जन्म, पौधे के तुल्य बाल्यकाल, वृक्ष के समान यौवनावस्था, ठूंठ की तरह बुढ़ापा और गिरे हुए पेड़ सरीखी मृत्यु होती है। उन्होंने कहा कि धन, यौवन और जीवन पानी के बुलबुले के समान होते हैं।
एक पद पर हमेशा के लिए कोई आसीन नहीं रह सकता। सब अनित्यता के स्वभाव को जानते हैं, कहते भी हैं, लेकिन उसी के लिए दिन-रात दौड़ लगाते हैं। अनासक्ति की चाबी है अनित्य भावना।
संचालन मीठालाल मकाणा ने किया। धर्मसभा में चैनराज गोदावत, शांतिलाल बोहरा, शांतिलाल सियाल, माणकचंद खारीवाल, महावीर मेहता आदि मौजूद रहे।

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