सत्य की यात्रा करने वाली एक गीतिका प्रस्तुत करते हुए रमणीक मुनि ने कहा कि किसी के दर्द को अपना दर्द समझना संवेदना कहलाता है। आत्मा की पहचान ही भावों को सुंदर बनाती है। खूबसूरती विनय के भाव के बिना नहीं आ सकती। इसके लिए विनम्रता व हृदय में निस्वार्थ प्रेम जरूरी है। निस्वार्थ प्रेम में ही व्यक्ति अहंकार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। दूसरे के दर्द को समझने वाले को आस्तिक बताते हुए मुनि ने कहा कि सब अपने आप को परिभाषित करने में जुटे हैं। ऐसे में किसी से आत्मीयता का अनुभव नहीं रह जाता है। मुनि ने कहा कि अहंभाव से ही भेदभाव का जन्म होता है। इसे मिटाने की नितांत आवश्यकता है।
रमणीक मुनि ने कहा कि व्यक्ति के रक्त में भगवान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मान मान्यताएं भी अहंकार का पर्यायवाची शब्द है। इससे पूर्व ऋषि मुनि ने गीतिका सुनाई। धर्मसभा में पारस मुनि ने मांगलिक प्रदान की। चिकपेट शाखा के महामंत्री गौतमचंद धारीवाल ने बताया कि सोमवार से मुनिवृन्द के मुखारबिन्द से राजा हरिशचन्द्र की कथा का वाचन होगा। सुरेश मूथा ने संचालन किया।
शिविर में बच्चों की नेत्र ज्योति का परीक्षण
बेंगलूरु. मागड़ी रोड स्थित एक विद्यालय में शनिवार को नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। नेत्र चिकित्सकों ने बच्चों को नेत्र की सुरक्षा और सफाई के बारे में जानकारी दी। विद्यालय प्रधानाचार्य राजी ने बताया कि बच्चों को नि:शुल्क नेत्र दवा और चश्मों का भी वितरण किया गया। इस अवसर पर संगीता मेहता और मीना मुणोत का विशेष सहयोग रहा।
बेंगलूरु. मागड़ी रोड स्थित एक विद्यालय में शनिवार को नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। नेत्र चिकित्सकों ने बच्चों को नेत्र की सुरक्षा और सफाई के बारे में जानकारी दी। विद्यालय प्रधानाचार्य राजी ने बताया कि बच्चों को नि:शुल्क नेत्र दवा और चश्मों का भी वितरण किया गया। इस अवसर पर संगीता मेहता और मीना मुणोत का विशेष सहयोग रहा।