प्रभु वाणी के पीछे न भय है न लोभ है-डॉ. समकित मुनि
बैंगलोरPublished: Oct 29, 2020 06:15:41 pm
उत्तराध्ययन सूत्र वाचन एवं विवेचन
प्रभु वाणी के पीछे न भय है न लोभ है-डॉ. समकित मुनि
बेंगलूरु. अशोकनगर शूले में विराजित श्रमण संघीय डॉ. समकित मुनि ने कहा कि प्रभु वाणी वह प्रकाश है जो मन का तम नष्ट करती है, वह ऐसी पावन गंगा है जो मन का मैल धोती है। तीर्थंकर की वाणी ऐसा परम सत्य है जिसके आगे कोई सत्य नहीं है। प्रभु वाणी के पीछे न भय है न लोभ है। इस वाणी में राग-द्वेष की मिलावट नहीं है। तीर्थंकर की वाणी में एकमात्र जन-जन के कल्याण की गूंज है।
सातवें अध्ययन पर मुनि ने कहा दुनिया में जो सज्जन है वह सताए जाते हैं और दुर्जन गले लगाए जाते हैं। जब जनसाधारण यह दृश्य देखता है तो उनके मन में एक प्रश्न आता है कि क्या ईमानदारी का रास्ता गलत है। मुनि ने कहा कि दुनिया बहुत स्वार्थी है यह मुफ्त में कुछ नहीं देती। हमेशा याद रखो यदि कोई हमें हमारी योग्यता से बढक़र सुख सुविधा दे, चापलूसी करें, जी हुजूरी करें तो समझना कि वह हमें एक दिन बलि का बकरा बनाएगा। हमें कुछ फ्री में मिल रहा है तो समझो कि आपत्ति का आमंत्रण भी साथ है। कभी भी सुविधा वादी मत बनो, लग्जरी लाइफ मत जिओ। जो लग्जरी लाइफ जीना चाहता है वह आपत्ति को आमंत्रण देता है।
मुनि ने कहा व्यक्ति किसी से एक बार झगडक़र टकराव करके लंबे काल का चला आ रहा प्रेम नष्ट कर देता है। छोटे से जख्म के पीछे वर्षों से चला आ रहा प्रेम खत्म करना यह घाटे का सौदा है। इंसान को चाहिए कि उसे जो मिला है उसे संभाले। जब व्यक्ति नहीं मिले को पाने के चक्कर में पड़ जाता है तो मिला हुआ उसके हाथ से छूट (खो) जाता है जिस कारण से अंत में उसे रोना पड़ता है। जिसका अभाव है उस तरफ मत देखो बल्कि जो है उसे प्रेम पूर्वक सुरक्षित रखो। मानव जीवन पूंजी के समान है। इस पूंजी को बढ़ाना यानी सदगति को पाना। पूंजी को घटाना यानी नरक एवं तीर्यंच गति को पाना। मुनि ने प्रेरणा दी कि पूंजी को यथावत बनाकर रखने वाला मानवगति को पता है एवं जो कर्जा चढ़ा लेता है वह कभी सत्कार योग्य नहीं बन पाता। यह प्रण करें मैं इस दुनिया से कर्मों का कर्जा चढ़ा कर विदा नहीं लूंगा।