उन्होंने कहा कि रोम-रोम से अपने को गुरुमय, परमात्मामय अनुभव करना पड़ता है। इसके बिना जीवन में परमात्मा आता भी नहीं है। पर यदि जीवन में एक बार भी यह साहस व्यक्ति जुटा सका, तो जीवन बदल जाता है।
जीवन सुख-शांति-संतोष, समृद्धि प्रगति से भर उठता है। भीतर यह भाव जगाने के लिए जो रास्ते में कांटे बोता है, उसके रास्ते में तुम्हें फूल बिछाना पड़ेगा। जो दूसरों की राह में फूल बिछाने वाले हैं, उन्हें कोई कमी नहीं रहती। प्रसन्नचित्त रहने का यही एक मार्ग है।
उन्होंने कहा कि प्रसन्नता का वास उन्हीं के दिलों में होता है, जिनके मन में कोई क्लेश नहीं होता, जिनके सिर पर कर्जा नहीं होता, शरीर में रोग नहीं होता, चिन्ता और अशान्ति से जिनका कोई संबंध नहीं है।
उनके ऊपर प्रभु की कृपा है और वे लोग ही दुनिया में प्रसन्न रहते हैं। क्योंकि परमात्मा की कृपा के बिना यह अनमोल गुण प्राप्त नहीं होता।