पहली बार दो धुर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और जद (एस) ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, ओल्ड मैसूरु सहित वोक्कालिगा बहुल क्षेत्रों में दोनों दलों के स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच मतभेद दूर नहीं होने से मुकाबला रोचक हो गया है। यह लोकसभा चुनाव केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वापसी और एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाले कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन सरकार के भविष्य के लिहाज से भी काफी अहम है। कई दिग्गज नेताओं का यह आखिरी चुनाव हो सकता है तो कई नेताओं का भविष्य दांव पर है। कइयों के साख का सवाल है तो कहीं विरासत की भी लड़ाई है। निर्णायक घड़ी आ गई है और जनता को फैसला सुनाना है। राजनीतिक पंडितों ने भविष्यवाणी कर रखी है कि गठबंधन सरकार का भविष्य लोकसभा चुनावों तक ही है। इस चुनाव के बाद या तो सरकार बिखर जाएगी अथवा और मजबूत बनकर उभरेगी। ऐसे में इस बार के लोकसभा चुनाव में गठबंधन सरकार का भविष्य दांव पर है तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस येड्डियूरप्पा का राजनीतिक भविष्य भी तय होनेवाला है।
सीटें बचाने की चुनौती दूसरे चरण में 14 में से भाजपा को 6 सीटें बचाने की चुनौती है वहीं जद (एस) को 3 और कांग्रेस की प्रतिष्ठा का दांव 5 सीटों पर लगा है। इनमें से कई ऐसी सीटें हैं जहां ‘टच एंड गो’ की स्थिति है। इन सीटों पर दोनों ही पक्षों के बड़े नेता व स्टार प्रचारकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। हालांकि लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले भाजपा के कुछ सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी और माना जा रहा था कि उनके लिए इस लोकसभा चुनाव में काफी मुश्किलें होंगी। लेकिन, एयर स्ट्राइक और मोदी के प्रचार के बाद स्थितियों में कुछ बदलाव के संकेत मिले हैं जिससे मुकाबला रोचक हो गया है। दूसरे चरण में जिन 14 सीटों पर मतदान हो रहा है उसमें जनता दल एस के 4 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं वहीं कांग्रेस के 10 और भाजपा के 13 प्रत्याशी मैदान में है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक मोदी फैक्टर को अहम मान रहे हैं। कई लोकसभा क्षेत्रों में मतदाताओं के रुख का जायजा लिया तो वे मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना तो चाहते हैं। लेकिन स्थानीय स्तर पर भाजपा को वोट नहीं देना चाहते। ऐसे मतदाताओं का रुख नतीजों पर असर डालेगा। पिछले तीन दशकों से कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के खाते में रहा मैसूरु लोकसभा क्षेत्र जद (एस) समर्थकों रुख पर निर्भर है। जिन 14 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान होंगे उनमें सबसे अहम तूमकुरु लोकसभा सीट है जहां से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा मैदान में हैं। उम्र के ८५ वें पड़ाव पर पहुंच चुके देवगौड़ा के लिए संभवत: यह आखिरी चुनाव होगा। उनके सामने भाजपा के जीएस बसवराजू हैं। पौत्र प्रज्वल रेवण्णा के लिए हासन लोकसभा क्षेत्र छोडक़र तूमकुरु पहुंचे देवगौड़ा के लिए इस बार की लड़ाई आसान नहीं है।
चिकबल्लापुर लोकसभा सीट पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री एम. वीरप्पा मोइली के राजनीतिक भविष्य को लेकर काफी अहम है। कांग्रेस के हैवीवेट नेता मोइली का यह आखिरी चुनाव हो सकता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता बीएन बच्चेगौड़ा से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है। बच्चेगौड़ा के लिए भी यह आखिरी चुनाव हो सकता है। इस लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण इस बार निर्णायक भूमिका निभा सकता है। बेंगलूरु शहर में भाजपा को इस बार कड़ी टक्कर मिल रही है तो तटीय कर्नाटक की दो सीटों पर फिर एक बार धु्रवीकरण ही निर्णायक साबित होगा।