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तब दिग्गज नेता सुषमा स्वराज को यहां से मिली थी शिकस्त, इस बार क्या होगा

locationबैंगलोरPublished: Apr 21, 2019 05:58:48 pm

वर्ष 1951 से लेकर 1999 तक लगातार कांग्रेस ही इस सीट पर जीतती रही थी। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यहां से चुनाव जीतकर संसदीय राजनीति में कदम रखा था। तब उन्होंने भाजपा की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज को शिकस्त दी थी।

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तब दिग्गज नेता सुषमा स्वराज को यहां से मिली थी शिकस्त, इस बार क्या होगा

भाजपा ने खोई प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए लगाया दम
बेंगलूरु. छह माह पहले ही ठीक दीपावली के दिन कांग्रेस ने बल्लारी में जीत का दिया जलाया था। पार्टी ने 14 के बाद साल बाद अपने इस मजबूत गढ़ को भाजपा से छीनने में कामयाबी हासिल की थी। वर्ष 2004 से ही यह सीट भाजपा जीतती रही थी, लेकिन बीते उपचुनाव में कांग्रेस और जनता दल-एस गठबंधन ने आक्रामक चुनावी अभियान चलाया और मजबूत उम्मीदवार के सहारे यह सीट फिर हासिल कर ली।
इससे पहले वर्ष 1951 से लेकर 1999 तक लगातार कांग्रेस ही इस सीट पर जीतती रही थी। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यहां से चुनाव जीतकर संसदीय राजनीति में कदम रखा था। तब उन्होंने भाजपा की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज को शिकस्त दी थी।
हालांकि, तब भाजपा का यहां कोई विशेष प्रभाव नहीं था। लेकिन, उस चुनाव के बाद ही खनन कारोबार से जुड़े रेड्डी बंधुओं का राजनीतिक क्षितिज पर उदय हुआ और भाजपा का सियासी दबदबा बढ़ गया। घोटालों के आरोप लगने के बाद जब रेड्डी बंधुओं का प्रभाव कम हुआ तो भाजपा भी कमजोर हुई और पिछले उपचुनाव में उसे हार का स्वाद चखना पड़ा। डीके शिवकुमार की अगुवाई में कांग्रेस की रणनीति कामयाब हुई और उग्रप्पा बड़े अंतर से जीते।
असंतुष्ट नेता बिगाड़ सकते हैं खेल
इस क्षेत्र में परिस्थितियां बदल गई हैं। छह महीने में ही कांग्रेस पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह चरम पर पहुंच गया। कैबिनेट में जगह नहीं मिलने और अनदेखी के कारण नेताओं में नाराजगी बढ़ी है। विजयनगर के विधायक आनंद सिंह और कंपल्ली के विधायक गणेश के बीच का विवाद जगजाहिर है। कई नेताओं ने उपग्रप्पा से दूरियां बना ली हैं। इन तमाम मतभेदों ने भाजपा उम्मीदवार वाई देवेंद्रप्पा की उम्मीदें जगा दी हैं। कांग्रेस के बीच मतभेद को इस नजरिए से भी देखा जा सकता है कि देवेंद्रप्पा रमेश जारकीहोली के संबंधी हैं। रमेश जारकीहोली और डीके शिवकुमार के बीच उत्तर कर्नाटक में वर्चस्व की लड़ाई ने गठबंधन सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। वही मुश्किलें अब भी हैं। हरप्पनहल्ली के देंवेंद्रप्पा पहले कांग्रेस के ही सदस्य थे। लेकिन, लोकसभा चुनावों से पहले वे भाजपा में शामिल हुए और अब पार्टी की टिकट पर वीएस उग्रप्पा के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। बल्लारी के एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने कहा कि अगर पार्टी यहां हारती है तो उसकी एक ही वजह होगी और वह है अंदरूनी कलह।
वहीं, भाजपा की स्थिति भी कमोबेश कांग्रेस जैसी ही है। कई नेताओं का मानना है कि पार्टी का उम्मीदवार बल्लारी के कद्दावर नेता बी. श्रीरामुलु के परिवार से होना चाहिए। कई कार्यकर्ताओं के मन में देवेंद्रप्पा को लेकर बहुत उत्साह नजर नहीं आता। वहीं खनन कारोबपारी जी. जनार्दन रेड्डी का अनुपस्थिति से भी भाजपा का चुनावी अभियान थोड़ा फीका जरूर हुआ है।
कांग्रेस : सभी नेता हमारे साथ
वीएस उग्रप्पा पार्टी के भीतर किसी भी तरह के मतभेदों को खारिज करते हैं। उन्होंने कहा कि केवल गणेश कंपल्ली को छोडक़र बाकी सभी विधायक उनके पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। गणेश कंपल्ली जेल में हैं। उन्होंने दावा किया कि अभी उनकी उम्मीदें उप चुनावों से भी बेहतर हैं। देवेंद्रप्पा और उग्रप्पा का भविष्य अंतत: लिंगायत और एसटी मतदाता ही तय करेंगे। इस लोकसभा क्षेत्र में इन्हीं दो समुदायों का वर्चस्व है। इसके अलावा अल्पसंख्यक और कुरुबा समुदाय के भी मतदाता अच्छी तादाद में हैं।

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