अन्याय का जन्म ही विनाश के लिए हुआ है। किसी भी व्यक्ति के साथ किया गया अन्याय आत्मा के आध्यात्मिक रूप से उठने के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है, क्योंकि बिना न्यायप्रिय हुए कोई भी अध्यात्म की पहली सीढ़ी भी नहीं चढ़ सकता है। न्याय करना प्राकतिक कर्म है और अन्याय करना अप्राकृतिक कर्म। राजा हो या फकीर, प्रजा हो या मंत्री सबमें एक ही बात का होना आवश्यक है, वह है न्याय। कोई राजा यदि अन्याय करता है तो वह राजा नहीं है बल्कि राजा बनकर बैठा धर्म विनाशक है।
यदि कोई फकीर अन्याय की चादर ओढ़ता है तो फकीर नहीं। जो जनता अन्याय की समर्थक हो वह जनता नहीं बल्कि अधर्मियों का झुंड है। वे आगे बोले की पृथ्वी पर जितने भी आध्यात्मिक व्यक्ति आए, वह भले ही किसी भी मत के मानने वाले हों, किसी भी भोगौलिक क्षेत्र के हों, किसी भी ***** के हों सबने जो समान बात की है, वह है न्याय।
घर से बाहर तक, शरीर से आत्मा तक यदि आप न्याय के साथ नहीं खड़े होते हैं, तो आप अधर्म के रास्ते पर हैं। यदि आप न्याय के साथ हैं, तभी धर्म मार्ग पर हैं और जब आप धर्म मार्ग पर हैं, तभी आध्यात्मिकता की ओर हैं, अन्यथा आध्यात्मिकता आपसे ठीक विपरीत खड़ी मिलेगी।