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बैंगलोर

टीपू जयंती समारोह: समर्थन और विरोध के बहाने सियासी रोटियां सेंक रही पार्टियां

सत्ता में रहते भाजपा नेता भी शामिल हुए थे टीपू जयंती कार्यक्रम में

बैंगलोरNov 10, 2018 / 06:25 pm

Rajendra Vyas

tipu jayanti

टीपू जयंती समारोह: समर्थन और विरोध के बहाने सियासी रोटियां सेंक रही पार्टियां

राजकीय समारोह घोषित होने के बाद बढ़ी है तकरार
बेंगलूरु. वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में अहिंदा (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित) समीकरण के दम पर सत्ता हासिल करने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने जब 18 वीं सदी के शासक टीपू सुल्तान का जन्मदिन राजकीय समारोह के तौर पर मनाने की घोषणा की थी तो एक नया राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था। वर्ष 2015 में यह घोषणा क्या हुई राज्य में हिंसक राजनीति के एक नए अध्याय की शुरुआत हो गई।
वर्ष 2015 में टीपू जयंती समारोह के पहले आयोजन के दौरान ही मडिकेरी में व्यापक तौर पर हिंसा हुई जिसमें दो जानें गईं जबकि कई लोग घायल हो गए। टीपू जयंती पर जुलूस निकाल रहे एक समूह को रोका गया था जिससे हिंसा भड़क उठी थी। इसके बाद से ही हर वर्ष टीपू जयंती के दौरान पूरे राज्य में पर हलचल मच उठती है और कई जिलों में संघर्ष की स्थिति को देखते हुए निषेधाज्ञा लागू करनी पड़ती है। इस बार भी कोडुगू सहित तटीय जिलों में निषेधाज्ञा लागू है। टीपू जयंती का राजनीतिकरण इस कदर हो चुका है कि हर वर्ष सिर्फ 10 नवम्बर के आते ही जहां दक्षिणपंथी संगठन इसके विरोध में सड़क पर उतर आते हैं वहीं राज्य की प्रमुख राजनीतिक पार्टी भाजपा भी पूरे राज्य में इसका पुरजोर विरोध करती है। लेकिन, 10 नवम्बर बीतते ही सबकुछ शांत हो जाता है। फिर कोई टीपू को याद नहीं करता, उनके योगदानों की चर्चा नहीं होती और यहां तक की टीपू से जुड़े पुरातात्विक स्थल की की भी कोई खोज-खबर नहीं लेता।
टीपू का जन्म 10 नवम्बर 1750 को शहर के बाहरी इलाके देवनहल्ली में हुआ था। वे 1782 से लेकर 1799 (अपनी मृत्यु तक) तक मैसूर के शासक रहे। टीपू जयंती का विरोध करने वालों का कहना है कि मैसूरु का यह शासक कू्रर था और अपने शासनकाल के दौरान कोडुगू और दक्षिण कन्नड़ जिले में बड़े पैमाने पर कोडवा समुदाय के लोगों का नरसंहार किया था। लिहाजा सरकारी खर्चे पर उनकी जयंती नहीं मनाई जानी चाहिए। लेकिन, टीपू सुल्तान को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का विरोध करने एवं युद्ध में रॉकेट प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने वाले प्रथम व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता है। सिद्धरामय्या ने उनके व्यक्तित्व के इसी पहलू को उजागर करते हुए टीपू जयंती समारोह मनाने का निर्णय किया।
भले ही भाजपा और इससे जुड़े संगठन टीपू जयंती समारोह का विरोध करते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि जब राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी तब बतौर मुख्यमंत्री बीएस येड्डियूरप्पा और जगदीश शेट्टर टीपू जयंती समारोहों में भाग ले चुके हैं। जब सिद्धरामय्या सरकार ने पहली बार आधिकारिक तौर पर टीपू जयंती समारोह मनाने की घोषणा की थी और भाजपा ने उसका पुरजोर विरोध किया था तब येड्डियूरप्पा और शेट्टर की टीपू जयंती समारोह में शामिल होने की तस्वीरें भी सार्वजनिक हुईं थीं। पिछली बार टीपू जयंती समारोह को लेकर उठे विवादों के बीच जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्य विधानसभा की हीरक जयंती पर संयुक्त सत्र को संबोधित किया तो टीपू सुल्तान के योगदानों की चर्चा करते हुए उनकी सराहना की। दरअसल, टीपू सुल्तान के वशंज भी यह मानते हैं कि इस समारोह का पूर्ण रूप से राजनीतिकरण हो चुका है। टीपू के सातवें वंशज शहबजादे सैय्यद मंसूर अली टीपू ने कहा ‘ईमानदारी से कहूं तो टीपू जयंती समारोह का पूर्ण राजनीतिकरण हो चुका है। राजनीतिक पार्टियां उनका नाम लेकर राजनीतिक फायदा उठाना चाहती हैं। राज्य में अन्य कई हस्तियों की जयंती मनाई जाती है लेकिन जो हो-हल्ला 10 नवम्बर को लेकर होता है वह किसी भी अन्य समारोह में सुनाई नहीं देता।’

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