
तृष्णा और मोह से बचने का प्रयास करें: आचार्य महाश्रमण
बेंगलूरु. कुम्बलगोडु में स्थित आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में शनिवार को आचार्य महाश्रमण ने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को कहा कि ‘सम्बोधि’ में एक प्रश्न है कि पहले तृष्णा आती है या मोह। भगवान महावीर ने इसका समाधान प्रदान करते हुए कहा कि दोनों ही एक-दूसरे से प्रेरित हैं। जब व्यक्ति के मोहनीय कर्म का उदय होता है तो तृष्णा पैदा होती है और जब तृष्णा पैदा होती है तो व्यक्ति के भीतर उसके प्रति मोह उत्पन्न हो जाता है। व्यक्ति के भीतर जब किसी पदार्थ को प्राप्त करने की तृष्णा बनने लगती है और वह उस व्यक्ति को प्राप्त होती है तो व्यक्ति का उसके मोह भाव भी प्रगा होने लगता है।
इस प्रकार तृष्णा से मोह और मोह से तृष्णा पैदा होती है। आदमी को अपने जीवन में तपस्या आदि के माध्यम से मोह और तृष्णा को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्य ने कहा कि आदमी को तृष्णा और मोह को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य ने ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ पुस्तक के माध्यम से आचार्य महाप्रज्ञ के जन्म व उसके साथ हुई कुछ घटनाओं आदि का वर्णन करते हुए लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पुरुषार्थ के माध्यम से आदमी कुछ भी संभव किया जा सकता है।
आचार्य के मंगल प्रवचन के बाद अनेक-अनेक महिला, पुरुष आदि तपस्वियों ने उपस्थित होकर अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।
Published on:
27 Jul 2019 10:12 pm
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