scriptक्‍या हुआ जब धरती के ऊपर फटा 40 मीटर आकार का लघु ग्रह | tunguska meteor event asteroid impact on earth | Patrika News

क्‍या हुआ जब धरती के ऊपर फटा 40 मीटर आकार का लघु ग्रह

locationबैंगलोरPublished: Jun 28, 2019 07:07:07 pm

Submitted by:

Sanjay Kumar Kareer

लघु ग्रहों के पृथ्वी से टकराने की आशंका आज भी बरकरार, 30 जून को लघु ग्रह दिवस पर विशेष तैयारी

tunguska meteor event

क्‍या हुआ जब धरती के ऊपर फटा 40 मीटर आकार का लघु ग्रह

बेंगलूरु. एक शताब्दी पूर्व 30 जून 1908 में 30 जून की सुबह रूस में टंगुस्का नदी (tunguska river ) के ऊपर एक लघु ग्रह (asteroid ) ने पृथ्वी (Earth) के वातावरण में प्रवेश किया और लगभग 8.5 की ऊंचाई पर एक भयंकर विस्फोट के साथ नष्ट हो गया। विस्फोट की शक्तिशाली आघात तरंगों से 2100 वर्ग किमी इलाके के 80 लाख पेड़ गिर गए या ठूंठ बन गए। स्थानीय लोगों ने इसे दैवीय आपदा माना मगर वैज्ञानिकों के अनुसार यह लगभग 40 मीटर आकार का एक लघु ग्रह था जो पृथ्वी के वातावरण से गुजरते समय बेहद गर्म होकर फट गया। इस प्रक्रिया में शायद 2.8 मेगाटन ऊर्जा विसरित हुई। आकाश में ही फटने से कोई क्रेटर नहीं बना लेकिन ऐसी घटनाएं शायद सौ या अधिक वर्षों में एक बार होती हैं।
भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर (सेनि) रमेश कपूर ने बताया कि टंगुस्का की घटना की वार्षिकी के रूप में वर्ष 2015 से ही 30 जून का दिन लघु ग्रह दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। यह एक जागरूकता अभियान भी है जिसे ब्रिटेन की रॉयल एस्ट्रोनोमिकल सोसायटी, यूरोपीय स्पेस एजेंसी तथा प्लैनेटरी सोसायटी जैसी अनेक शीर्षस्थ संस्थाओं का समर्थन प्राप्त है। चाहे ऐसी घटना विरले ही होती हैं, धरती से लघु ग्रहों के टकराने की संभावना शून्य तो नहीं है।
ये माने जाते हैं खतरनाक लघु ग्रह

वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के निकट से रोजाना हजारों लाखों उल्काएं, लघु ग्रह (Asteroid) गुजरते हैं। इनमें से अधिकांश वातावरण में 80-90 किलोमीटर की ऊंचाई पर जलकर नष्ट हो जाते हैं। इनमें कुछ-एक बड़े आकार के पिंड भी हैं। वे पिंड जिनका आकार 100 मीटर या अधिक है और पृथ्वी से 75 लाख किलोमीटर के भीतर से होकर गुजरते हैं बेहद खतरनाक लघु ग्रह कहलाते हैं। इनपर स्पेस एजेंसियों की नजर होती है और इनकी कक्षाओं का पता लगाया जाता है।
जागरूकता के लिए कई आयोजन

नेहरू तारामंडल बेंगलूरु के निदेशक प्रमोद गलगली ने बताया कि इस अवसर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। छात्रों के लिए विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया है जिनमें उन्हें यह बताया जाएगा कि कैसे लघु ग्रहों की पहचान करें। लघु ग्रहों के प्रभावों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी। इस दौरान तारामंडल में लघु ग्रहों और पृथ्वी निकट पिंडों के पोस्टर प्रदर्शित किए जाएंगे। भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के पूर्व निदेशक डॉ जितेंद्रनाथ गोस्वामी का विशेष व्याख्यान होगा।
हर रोज धरती पर गिरते हैं सैकड़ों टन धूल, उल्का

तारामंडल के खगोल वैज्ञानिक एमवाई आनंद ने बताया कि 2019 की शुरुआत तक पृथ्वी के निकट 19 हजार लघु ग्रहों की खोज हो चुकी थी। हर सप्ताह लगभग 30 नए लघु ग्रह इसमें जुड़ते जाते हैं। हर रोज पृथ्वी पर 80 से 100 टन पदार्थ उल्का पिंडों या धूल के रूप में गिरते हैं। उन्होंने कहा कि आज से 10 साल बाद एक लघु ग्रह पृथ्वी के बेहद करीब से गुजरने वाला है। लघु ग्रहों के पृथ्वी से टकराने की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता।
चेल्याबिंस्क में भी हुआ था विस्फोट

रूस के चेल्याबिंस्क में भी 15 फरवरी 2013 के दिन आसमान में एक लघु ग्रह पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष में विचरते हुए इसके गुरुत्वाकर्षण से खिंच कर आ गिरा। वातावरण से गुजरते समय यह इतना गर्म हो गया कि फट गया। लोगों को लगा एक और सूर्य का उदय हो गया। वैज्ञानिकों का विचार है कि यह लघु ग्रह था जिसका आकार लगभग 19 मीटर और वजन करीब 10 हजार टन था। जमीन पर पहुंचने से पहले लगभग 20 किमी की ऊंचाई पर यह आग का गोला बन गया। इसके कारण जो आघात तरंग पैदा हुई, उससे अनेक भवनों के शीशे टूट गए और लगभग 1200 लोग जख्मी हो गए। इसके फटने से लगभग 500 किलोटन ऊर्जा विसर्जित हुई। यह हिरोशिमा पर 1945 में गिराए गए परमाणु बम से लगभग 30 गुणा ज्यादा थी।

भारत में भी साक्ष्य
भारत में कई स्थानों पर उल्का पिंड और लघु ग्रहों के गिरने के साक्ष्य मिले हैं। इनमें सबसे मशहूर है बुलढाणा (महाराष्ट्र) में लुनार झील। यह नमकीन पानी की झील है इसका क्रेटर 1830 मीटर चौड़ा और 150 मीटर गहरा है। इसके रिम 20 मीटर ऊंचे हैं। ऐसा विश्वास है कि 50 हजार वर्ष पूर्व कोई 100 मीटर आकार वाला लघु ग्रह यहां गिरा था। उसकी रफ्तार 6 5 हजार किमी प्रतिघंटा रही होगी।
जागरूकता के लिए जरूरी

लघु ग्रह दिवस का उद्देश्य हमें सचेत करना है कि पृथ्वी के आसपास का अंतरिक्ष पूरी तरह निरापद नहीं है। पृथ्वी को ऐसी किसी आपदा से बचाए रखने के लिए सभी देशों के सम्मिलित प्रयास की जरूरत है। आने वाले 10 वर्षों में ऐसी किसी संभावना से कैसे निपटा जाए, इसके ठोस कार्यक्रम की शुरुआत की आशा की जाती है। साथ ही यह दिवस हमें सौरमंडल के अद्भुत स्वरूप का भी परिचय देता है। भारत में कई स्थानों पर विभिन्न संस्थाएं 30 जून को लघु ग्रह दिवस मनाएंगी।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो