राष्ट्रीय दृष्टिहीनता और दृष्टिबाधित सर्वेक्षण भारत 2015-19 के अनुसार देश में 50 वर्ष की आयु के 1.99 फीसदी लोग अंधत्व के शिकार हैं। 66.2 फीसदी में कैटरैक्ट बड़ा कारण है। वहीं 60 वर्ष की आयु से ऊपर के लोगों में ग्लूकोमा व मधुमेह चिंताजनक रूप से अंधत्व बढ़ा रहा है।
शंकर आई अस्पताल के नेत्र रोग विशेष डॉ. महेश षणमुगम के अनुसार उनके तृतीयक अस्पताल में 20 फीसदी मरीज बच्चे हैं और इनमें से अधिकांश को महज चश्मे की जरूरत पड़ती है। हर माह अस्पताल आने वाले वयस्क मरीजों में से लगभग 16 फीसदी को रेटिना, 15.8 फीसदी को ग्लूकोमा और 21 फीसदी को कैटरैक्ट की समस्या रहती है। इन स्थितियों के प्रभावी प्रबंधन के लिए समय पर निदान और उपचार महत्वपूर्ण है। यदि ग्लूकोमा या डायबिटिक रेटिनोपैथी जैसी स्थितियों का समय पर उचित इलाज नहीं किया जाए तो वे अपरिवर्तनीय अंधापन का कारण बन सकते हैं। विशेष रूप से बुजुर्गों और मधुमेह रोगियों के लिए नियमित रूप से आंखों की जांच को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। दृष्टि हानि को रोका जा सकता है।
मधुमेह के 17 से 28 फीसदी मरीजों को डायबिटिक रेटिनोपैथी
डॉ. षणमुगम ने बताया कि डायबिटिक मैकुलर एडिमा (डीएमइ) डायबिटिक रेटिनोपैथी (diabetic retinopathy) से जुड़ी समस्या है। एक शोध के अनुसार भारत में मधुमेह के 17 से 28 फीसदी मरीजों को डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या होती है। डीएमइ एक गंभीर स्थिति है और इसमे पूरी तरह से दिखना बंद हो सकता है। टाइप-1 या टाइप-2 मधुमेह से ग्रसित लोगों में डीएमइ विकसित हो सकता है। यह तब होता है जब आंख की मैक्यूला में अतिरिक्त मात्रा में तरल पदार्थ बनने लगता है। मैक्यूला वह हिस्सा है जो फोकस करने या देखने में मदद करता है।