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वयस्कों में दिखने वाला टाइप 2 मधुमेह अब बच्चों में भी

locationबैंगलोरPublished: Nov 14, 2019 06:03:20 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

बाल दिवस पर बाल रोग विशेषज्ञों ने बच्चों में बढ़ते मधुमेह और विशेषकर वयस्कों में दिखने वाला टाइप-2 मधुमेह के लेकर चिंत व्यक्त की है। क्योंकि ज्यादातर बच्चों में टाइप-1 मधुमेह के लक्षण देखने को मिलते हैं लेकिन टाइप-2 मधुमेह बच्चों को भी अपना शिकार बनाने लगा है।

वयस्कों में दिखने वाला टाइप 2 मधुमेह अब बच्चों में भी

वयस्कों में दिखने वाला टाइप 2 मधुमेह अब बच्चों में भी

– सुस्त जीवनशैली, जंक फूड, तनाव, पढ़ाई का दबाव, मोटापा और व्यायाम से दूरी बनी समस्या

– शारीरिक, मानसिक विकास बाधित

बेंगलूरु.

सुस्त जीवनशैली, जंक फूड और माता-पिता का अधिक प्यार बच्चों को टाइप-2 मधुमेह दे रहा है। तनाव के कारण भी मधुमेह पीडि़त बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। माता-पिता बच्चों को पढ़ाई के साथ अन्य क्षेत्रों में भी आगे बढऩे के लिए दबाव डालते हैं। बच्चे तनाव में रहते हैं और मधुमेह का शिकार हो जाते हैं। पीडि़त बच्चों को चिकित्सकीय व मनोवैज्ञानिक दोनों तरह के उपचार की जरूरत होती है।

डॉ. सोलंकी आई अस्पताल के अध्यक्ष व नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. नरपत सोलंकी के अनुसार टाइप-2 मधुमेह जीवनशैली विकारों से होता है। परिवारों में इकलौते बच्चे का चलन बढऩे के साथ मोटापा और मधुमेह भी बढ़ा है। अभिभावक बच्चों को जंक फूड और चॉकलेट तो देते ही हैं साथ में व्यायाम से भी दूर रखते हैं। कम्प्यूटर, लैपटॉप, वीडियो गेम्स और मोबाइल गेम्स से ही बच्चे का खेलकूद पूरा हो जाता है। दिक्कत की बात तो यह है कि काम के बोझ तले माता-पिता भी इनका सहयोग करते हैं। बाद में इसका खामियाजा बच्चे को भुगतना पड़ता है।

इंसुलिन बनती है पर काम नहीं करती
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. नरपत सोलंकी बताते हैं कि बच्चों में टाइप-2 प्रकार की मधुमेह ज्यादा चिंता का विषय है। इसमें इंसुलिन बनती है लेकिन काम नहीं करती। यह जीवनशैली के कारण होने वाली मधुमेह है। मेट्रों शहरों का हर चौथा बच्चा और गैर मेट्रो शहरों का हर छठा बच्चा मोटापे का शिकार पाया गया। बेंगलूरु, मैसूर और मैंगलोर के 16 स्कूलों में किए गए सर्वे में 16.5 बच्चे मोटापे के शिकार मिले। ऐसे में समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे बच्चे मधुमेह, फैटी लीवर, हृदय और नेत्र संबंधी बीमारियों की ओर तेजी से दौड़ रहे हैं।

50 में चार शिकार
नारायण हेल्थ सिटी के इंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. सुब्रमण्यन कन्नन के अनुसार बच्चों में टाइप-1 और टाइप-2 मधुमेह तेजी से बढ़ रही है। गत तीन महीने में उन्होंने मोटापे के शिकार 50 बच्चों का उपचार किया। इनमें से चार बच्चों को मधुमेह थी। डॉ. संजय राव ने कहा कि सॉफ्ट ड्रिंकमें मौजूद फ्रुक्टोस और चीनी का सुकरोस, पिज्जा, बर्गर, चिप्स, चॉकलेट के कारण मोटापा और मोटापे के कारण नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर के मामले बढ़े हैं। भविष्य में ऐसे बच्चों को लिवर सिरोसिस से ग्रस्त होने का खतरा 5-10 गुणा बढ़ जाता है। इसके अलावा मधुमेह उच्च रक्तचाप, लीवर कैंसर, हीमोग्लोबिन की कमी, ब्लॉकेज, गुर्दा और लिवर फेल होने की समस्या होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

ध्यान देना आवश्यक
-अगर बच्चा डायबिटिक है तोउसके खान-पान पर विशेष रूप से ध्यान दें।
-नियमित रूप से रक्त जांच कराएं, दवाएं दें और बाल रोग विशेषज्ञ के संपर्क में रहें।
-कई बार बच्चे दवा पर ध्यान नहीं देते हैं पर उन्हें समझाएं कि उसका दवाएं लेना कितना आवश्यक है।
-डायट चार्ट के अनुसार बच्चों को भोजन दें। कोल्ड ड्रिंक, जंक फूड, चॉकलेट, मिठाई, चावल और आलू जैसी चीजों से अपने बच्चे को दूर रखें।
– संतुलित और पौष्टिक आहार दें और उसे ज्यादा देर तक खाली पेट न रहने दें। इससे बच्चों को मधुमेह की चपेट में आने से भी बचाया जा सकता है।
-मोटे अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों में भी मधुमेह जांच कराएं।
-स्कूल के कैंटीन या बाहर बच्चा क्या खाता है इस बारे में बच्चे से बात करें।
-समय बचाने के चक्कर में लंच बॉक्स में जंक फूड न डालें।
-टेलीविजन देखते समय बच्चे का खाना न दें, खुद भी ऐसी गलती न करें।
-कई बीमारियों के कारण भी मोटापा बढ़ता है। अंदेशा हो तो चिकित्सक को दिखाएं।
-बच्चों का मजाक न उड़ाएं, उन्हें भावनात्मक सहयोग की जरूरत होती है।

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