उन्होंने कहा कि नि:स्वार्थ भाव से सेवा की जाए तो तीर्थंकर गोत्र का बंध होता है। शुभ कर्म का उपार्जन स्वत: ही हो जाता है। हमारे द्वारा किए अशुभ कर्मो की निर्जरा होती है। सेवा में जुडऩे के लिए समर्पण, उदारता, विनय, पुनवाणी का समावेश होना जरुरी है। श्रुत मुनि ने कहा कि अतिक्रमण से प्रतिक्रमण को हटाकर पापों की एवं अशुभ कर्म की निर्जरा करने का संदेश देता है। जो निरंतर प्रतिक्रमण करता है उसे आत्मिक सूरत, शारीरिक सूरत, मानसिक सूरत प्राप्त होती है। रविवार को दोपहर 2 बजे ‘आज की नारी कैसे बने संस्कारीÓ विषयक महिला अधिवेशन होगा।
परमात्मा के संग पार हो जाता है संसार सागर
बेंगलूरु. जिनकुशल सूरी जैन आरधना भवन, बसवनगुड़ी में साध्वी प्रियरंजनाश्री ने कहा कि संसार के सुख, धन, दौलत, भोग, विलास, परिवार, पद, प्रतिष्ठा, जो कि कांच का गिलास है, गिरते ही टूट जाएगा, ऐसा सुख यदि हम परमात्मा से मांगेंगे तो गिरने का, टूटने का कारण बनेगा।
उन्होंने कहा कि हमें तो परमात्मा से हीरा मांगना है जिसका गिरने और टकराने पर भी उसका कुछ नहीं बिगड़ता। उसी प्रकार यदि हम परमात्मा की शरण, परमात्मा का आसरा, परमात्मा का पथ मांग लेंगे तो निश्चित संसार सागर से पार उतर जाएंगे।
हमें स्वतंत्र सुख चाहिए या पराधीन सुख। हर व्यक्ति स्वाधीन सुख चाहता है। यह केवल परमात्म की शरण से ही संभव है। कर्मराजा किसी को भी छोडऩे वाला नहीं है। जिनकुशल सूरी जैन धार्मिक पाठशाला का वार्षिक महोत्सव रविवार को सायं 6.30 बजे आराधना भवन में होगा। इसमें बच्चों द्वारा कलकाल सवत्र्र हेमचंद्राचार्य के जीवन पर आधारित नृत्य नाटिका का मंचन किया जाएगा।