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बैंगलोर

नजरिया : एनआरसी पर सियासत क्यों ?

समस्या हमारे प्रशासनिक तंत्र में है। कोई अवैध तरीके से सीमा पार से आकर देश में कहीं रह रहा है तो वहां का तंत्र क्या कर रहा है? ऐसे लोगों की पहचान करना मुश्किल नहीं है।

बैंगलोरOct 06, 2019 / 06:01 pm

Ram Naresh Gautam

नजरिया : एनआरसी पर सियासत क्यों ?

Symbolic

राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (NRC) की राजनीतिक तपिश अब दक्षिण तक पहुंच चुकी है। कर्नाटक इसे लागू करने पर विचार करने वाला दक्षिण का पहला राज्य है।

अवैध रूप से रहने वाले ‘विदेशी’ लोगों की पहचान के लिए असम के तर्ज पर एनआरसी लागू करने की सरकार की मंशा और इस बयान के समय को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं।
विपक्ष का आरोप है कि बाढ़ राहत के मसले से ध्यान हटाने के लिए इस मुद्दे को हवा दिया जा रहा है। सैद्धांतिक तौर पर एनआरसी का विचार जितना अच्छा है, मौजूदा स्वरुप में यह उतना ही विरोधाभासी और जटिल भी है।
असम में यह समाधान के बजाय समस्या ही बन गया। प्रशासनिक अव्यवस्थाओं के कारण असम में कई विसंगतियां सामने आईं और कोई भी पक्ष इससे संतुष्ट नहीं है।

एनआरसी कोई नई अवधारणा नहीं है। विकसित देशों में ऐसी व्यवस्था है लिहाजा इसका विरोध तार्किक नहीं हो सकता। लेकिन, असम में इसके क्रियान्वयन को लेकर सामने आई प्रशासनिक दिक्कतें और विसंगतियां, व्यवहारिक समस्याओं को उजागर करती हैं।
असम में कोई भी पक्ष एनआरसी की अंतिम सूची से खुश नहीं है। ना सरकार, ना विपक्ष और ना ही जनता। सवाल है कि फिर इसमें सुधार किए बिना दूसरे राज्य इसे अपनाने के लिए व्यग्र क्यों हैं?
केंद्रीय गृह मंत्री इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना चाहते हैं तो फिर राज्यों में इतनी हड़बड़ी क्यों है? सवाल उठना लाजिमी है। घुसपैठियों को वापस भेजने को लेकर किसी को क्यों आपत्ति होनी चाहिए?
कर्नाटक में अवैध तरीके से रहने वाले लोगों की संख्या को लेकर राजनीतिक दलों के दावे और सरकारी आंकड़ों में काफी अंतर है।

एनआरसी के हिमायती इसकी संख्या 40 हजार बताते हैं तो सरकारी आंकड़ों में अवैध तरीके से रहने वाले विदेशियों की संख्या एक हजार भी नहीं है।
दरअसल, समस्या हमारे प्रशासनिक तंत्र में है। कोई अवैध तरीके से सीमा पार से आकर देश में कहीं रह रहा है तो वहां का तंत्र क्या कर रहा है? ऐसे लोगों की पहचान करना मुश्किल नहीं है।
मौजूदा कानून और प्रशासनिक व्यवस्था में भी ऐसे लोगों को पहचान कर उन्हें वापस भेजना संभव है। यह काम स्थानीय प्रशासन का है। फिर ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा? पहले इसे सही करना होगा।
यह काम एनआरसी जैसी जटिल व खर्चीले प्रक्रिया के बिना भी किया जा सकता है। आधार कार्ड का एक मकसद नागरिकों का राष्ट्रीय स्तर पर रिकार्ड तैयार करना भी था।

असम में एनआरसी के परिणाम का सबक यही है कि हमारा शासकीय ढांचा अभी ऐसे कठोर निर्णयों को लागू करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है।
ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाओं को लागू करने से पहले हमें अपने प्रशासनिक तंत्र को दुरुस्त करना होगा वरना एनआरसी जैसा प्रयोग समाधान के बजाय समस्याओं का मकडज़ाल बन जाएगा।

यह सिर्फ राजनीतिक हथकंडा नहीं बनना चाहिए। कर्र्नाटक को इसे आनन-फानन में लागू करने से पहले असम के अनुभव को भी देखना-समझना चाहिए।
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