कृत्रिम सरोवर मण्डप में ही बनाया गया, जिसमें कमल भी खिलखिला रहे थे। दृश्य ऐसा था मानो पावापुरी श्रवणबेलगोला में ही उतर आया हो। इस पावापुरी में भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा एवं चरण चिह्न विराजमान कर आचार्य सुविधि सागर संसघ, आचार्य श्रेयसागर, अमरकीर्ति, अमोघकीर्ति सुयशगुप्त, चंद्रगुप्त सहित अनेक आर्यिका संघ व साधु-संतों के सान्निध्य में निर्वाण लाडू समर्पित किया गया।
साथ ही 64 दीपों से महाआरती की गई। चारुकीर्ति ने कहा कि जो भगवान महावीर स्वामी को पावापुरी में मिला था, वही प्रज्ञासागर को तपोभूमि से मिले।