बैंगलोर

हम मानसिक रूप से अभी भी हैं ब्रिटिश नागरिक: चंद्रशेखर कंबार

देश को आजाद हुए सात दशक गुजरने के बाद भी हमने आज भी ब्रिटिशों की मानसिकता नहीं छोड़ी है। इस गुलाम मानसिकता के कारण से ही देश की भारतीय भाषाओं का अस्तित्व मिट रहा है।

बैंगलोरMay 18, 2019 / 01:05 am

शंकर शर्मा

हम मानसिक रूप से अभी भी हैं ब्रिटिश नागरिक: चंद्रशेखर कंबार

बेंगलूरु. देश को आजाद हुए सात दशक गुजरने के बाद भी हमने आज भी ब्रिटिशों की मानसिकता नहीं छोड़ी है। इस गुलाम मानसिकता के कारण से ही देश की भारतीय भाषाओं का अस्तित्व मिट रहा है। ज्ञानपीठ पुरस्कृत लेखक डॉ. चंद्रशेखर कम्बार ने यह बात कही।

शहर में शुक्रवार को कन्नड़ साहित्य अकादमी की ओर से नाटककार बी. पुट्टस्वामी के नाटकों पर आयोजित विचार संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में उन्होंने कहा कि आजादी से पहले मैकाले की शिक्षा प्रणाली लागू होने से समाज के दलित तथा शोषित वर्ग के लोगों को भी अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा मिली, लेकिन आज हम इस प्रणाली के दुष्परिणाम देख रहे हैं। इससे देश की क्षेत्रीय भाषाओं का अस्तित्व मिट रहा है।


उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों की भाषाएं ही हमारी वास्तविक पहचान है। इस पहचान को बरकरार रखने के लिए हमें सबसे पहले अंग्रेजी भाषा के मोह से दूर होना पड़ेगा। केवल अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने पर ही रोजगार मिलेगा इस भ्रांति को दूर करना राज्य सरकार का दायित्व है।

क्षेत्रीय भाषाओं की रक्षा के लिए राज्य में सरकारी स्कूलों का उन्नयन कर यहां पर गुणात्मक शिक्षा सुनिश्चित करना सरकार का दायित्व है। उन्होनें कहा कि ऐतिहासिक तथा पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटकों के माध्यम से पुट्टस्वामी ने जनता को ब्रिटिशों के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया था।


पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटकों के खलनायक रावण, दुर्योधन को ब्रिटिश सरकार के रूप में पेश कर लोगों के बीच ब्रिटिश सरकार की तानाशाही मानसिकता के खिलाफ माहौल पैदा किया था। राज्य के ऐसे क्रांतिकारी साहित्यकार की रचनाओं पर राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार आयोजित किए जाने पर साहित्य अकादमी की ओर से सहायता प्रदान की जाएगी।

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