हमें हंसों से प्रेरणा लेनी चाहिए- आचार्य देवेंद्रसागर
हमें हंसों से प्रेरणा लेनी चाहिए- आचार्य देवेंद्रसागर
बेंगलूरु. संभवनाथ जैन संघ वीवी पुरम में विराजित आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने कहा कि हम हंसों के जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं। हमने देखा है कि कई बार उड़ते समय कोई हंस अपने समूह से अलग हो जाता है। तब उसे यह अनुभव होता है कि समूह के बिना वह उतनी तेजी से नहीं उड़ पा रहा क्योंकि उस स्थिति में वह समूह से प्राप्त ऊर्जा से वंचित हो जाता है। जैसे ही उसे यह अनुभव होता है, वह तुरंत समूह में वापस लौट आता है। हंसों के जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जब हम कठिनाइयों या तकलीफों से घिरे हुए हों, तो ऐसे समय में चाहिए कि हम अपने धर्मस्थानों पर जाएं और संतों-महापुरुषों की शिक्षाओं को समझें, उन्हें धारण करें। इससे हमें जीने की शक्ति और उत्साह मिलता है। आगे उडऩे वाले हंस को बाकी हंसों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा लगानी पड़ती है और काफी देर तक आगे रहने के बाद वह थकने लगता है। ऐसी स्थिति में वह अपना स्थान किसी दूसरे हंस को दे देता है और खुद पीछे चला जाता है। इस प्रवृत्ति से हमें सीखने को मिलता है कि जब हम एक समूह में ग्रुप लीडर के रूप में कार्य करते हैं, तब एक ऐसा समय आता है जब हम अनुभव करते हैं कि हमारी क्षमता पहले जैसी नहीं रही। तब हमें अपने आपको इस तरह से तैयार करना है कि अन्य अनुभवी व्यक्ति समय रहते हमारे काम को अच्छी तरह से समझ ले, ताकि वह कार्य सुचारू रूप से चलता रहे। किसी समूह प्रमुख मार्गदर्शक के रूप में हमें यह समझना बहुत जरूरी है कि हम कोई राजा या शासक नहीं बल्कि मात्र एक सहायक अथवा माध्यम है। हमारा कर्तव्य है कि हम अन्य लोगों की योग्यता बढ़ाएं और उनके अंदर छिपी योग्यता को बाहर लाएं। हंसों की एक और खासियत यह भी है कि वे उड़ते समय जो आवाजें निकालते हैं, उससे अपने मार्गदर्शक का उत्साह बढ़ाते हैं ताकि वह और तेजी से उड़ सके। जब हम किसी समूह में कार्य कर रहे हों तो हमें चाहिए कि हम एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहें। प्यार से किसी की पीठ थपथपाने और प्रोत्साहन भरे शब्दों का बहुत गहरा असर होता है। जब हम दूसरों को प्रोत्साहित करते हैं तो उससे उन्हें अधिक शक्ति और ऊर्जा मिलती है और वे अपने कार्य को बेहतर तरीके से कर पाते हैं।
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