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खरपतवार बनी प्लास्टिक का विकल्प, बनाई थैलियां

locationबैंगलोरPublished: Feb 18, 2020 07:14:36 pm

Submitted by:

Priyadarshan Sharma

अभियांत्रिक के विद्यार्थियों की पहल

खरपतवार बनी प्लास्टिक का विकल्प, बनाई थैलियां

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बेंगलूरु. हमारे आसपास पाई जाने वाली झाडिय़ों को खरपतवार समझ उखाड़ लेते हैं और नारियल का ऊपरी छिलका हम अमूमन फेंक देते हैं लेकिन बाहुबली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग श्रवणबेलगोला के विद्यार्थियों ने इनसे कागज के बैग तैयार कर दिखाए हैं। यह न केवल प्लास्टिक थैलियों का विकल्प है बल्कि पर्यावरण संरक्षण के साथ ही ग्रामीण स्वरोजगार में भी इससे मदद मिलेगी। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई ) ने भी इस परियोजना को छात्र विश्वकर्मा अवार्ड 2019 के लिए नामित किया है। कॉलेज के प्रोफेसर बबन पी दतेवाड़े के मार्गदर्शन में मैकेनिकल इंजीनियरिंग तृतीय वर्ष के विद्यार्थी-वृषभ एस, विक्रम सिंह और ओमकार ने बैग तैयार करने का यह तरीका ढूंढा है।
पहले विचार आया कि प्लास्टिक की बजाय कागज के बैग तैयार करें। इसके लिए पुराने अखबारों का उपयोग किया गया। प्रारंभिक चरण में 1 से डेढ़ किलो का वजन कागज के बैग ने उठा लिया, लेकिन बाद में 3 किलो का वजन थैली नहीं झेल पाई। इसके बाद गाजर घास के रेशे और नारियल के ऊपर के छिलकों को कागज के साथ काम में लिया गया। इस नए तरीके से तैयार थैली 3 से पौने 4 किलो तक का वजन उठाने में सक्षम साबित हुई। इसकी 40 पैसे से लेकर 3 रुपए तक आती है।
 

खरपतवार बनी प्लास्टिक का विकल्प, बनाई थैलियां
ऐसे होता है तैयार
पहले गाजर घास को काट लेते हैं फिर उसको 4 से 5 दिन तक पानी में भिगोकर रखते हैं। जब घास के डंठल मुलायम हो जाते हैं, उनमें से रेशे निकाल लिए जाते हैं। इन रेशों को 12 घंटे तक सुखाते हैं जबकि नारियल के छिलकों को सीधे ही काम में लिया जाता है। फिर अखबार के दो पन्नों के बीच गम लगाकर इन रेशों को चिपका देते हैं और तैयार होती है मनचाही आकृति की थैलियां। प्रो. बबन के इस प्रोजेक्ट को कस से रस नाम दिया गया है। इसकी लागत और कम करने पर विचार किया जा रहा है।
– प्रस्तुति : मुनि पूज्य सागर
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