पहले विचार आया कि प्लास्टिक की बजाय कागज के बैग तैयार करें। इसके लिए पुराने अखबारों का उपयोग किया गया। प्रारंभिक चरण में 1 से डेढ़ किलो का वजन कागज के बैग ने उठा लिया, लेकिन बाद में 3 किलो का वजन थैली नहीं झेल पाई। इसके बाद गाजर घास के रेशे और नारियल के ऊपर के छिलकों को कागज के साथ काम में लिया गया। इस नए तरीके से तैयार थैली 3 से पौने 4 किलो तक का वजन उठाने में सक्षम साबित हुई। इसकी 40 पैसे से लेकर 3 रुपए तक आती है।
ऐसे होता है तैयार
पहले गाजर घास को काट लेते हैं फिर उसको 4 से 5 दिन तक पानी में भिगोकर रखते हैं। जब घास के डंठल मुलायम हो जाते हैं, उनमें से रेशे निकाल लिए जाते हैं। इन रेशों को 12 घंटे तक सुखाते हैं जबकि नारियल के छिलकों को सीधे ही काम में लिया जाता है। फिर अखबार के दो पन्नों के बीच गम लगाकर इन रेशों को चिपका देते हैं और तैयार होती है मनचाही आकृति की थैलियां। प्रो. बबन के इस प्रोजेक्ट को कस से रस नाम दिया गया है। इसकी लागत और कम करने पर विचार किया जा रहा है।
– प्रस्तुति : मुनि पूज्य सागर
पहले गाजर घास को काट लेते हैं फिर उसको 4 से 5 दिन तक पानी में भिगोकर रखते हैं। जब घास के डंठल मुलायम हो जाते हैं, उनमें से रेशे निकाल लिए जाते हैं। इन रेशों को 12 घंटे तक सुखाते हैं जबकि नारियल के छिलकों को सीधे ही काम में लिया जाता है। फिर अखबार के दो पन्नों के बीच गम लगाकर इन रेशों को चिपका देते हैं और तैयार होती है मनचाही आकृति की थैलियां। प्रो. बबन के इस प्रोजेक्ट को कस से रस नाम दिया गया है। इसकी लागत और कम करने पर विचार किया जा रहा है।
– प्रस्तुति : मुनि पूज्य सागर