प्रारब्ध और पुरुषार्थ के मार्ग भिन्न हैं। प्रारब्ध के अनुसार भौतिक सफलता प्राप्त होती है। प्रारंभ भूतकाल में किया हुआ धर्म पुण्य सुकृत्यों का परिणाम है। प्रारब्ध कोई ऐसी चीज नहीं कि अभी चाहे और मिल जाए। प्रारब्ध ऐसी ही वस्तु नहीं कि आप इच्छा करें और पैसों से खरीदा जाए। इस जन्म में किया पुण्य अगले जन्म में जरूर काम आता है लेकिन इस जन्म के लिए तो भूतकाल का ही प्रारब्ध चाहिए।
मतलब यह हुआ कि आजकल यानी इस जन्म में आपको जो भी प्राप्त हुआ है वह भूतकाल के प्रारब्ध का फल है और इस जन्म में जो भी प्रारब्ध का उपार्जन कर रहे हो उसका फल आगामी जन्मों में मिलेगा। भूत कालीन गलती को दोहराना नही है, वर्तमान की पीड़ाओं से निजात प्राप्त करना है हो एवं भविष्य को सुंदर भव्य भव्य बनाना हो तो इस भव में अच्छे प्रारब्ध के लिए ठोस प्रयत्न करें।