बैंगलोर

जब महात्मा गांधी का भाषण सुन कर महिलाओं ने उतार दिए थे आभूषण

कन्नड़ भाषा के शब्दकोषविद् 105 वर्षीय प्रो. जी. वेंकटसुबय्या ने यह बात कही

बैंगलोरOct 03, 2018 / 04:55 pm

Ram Naresh Gautam

जब महात्मा गांधी का भाषण सुन कर महिलाओं ने उतार दिए थे आभूषण

बेंगलूरु. वर्ष 1927 में महात्मा गांधी ने तुमकूरु जिले के तहसील मुख्यालय मधुगिरी का दौरा किया था। इस दौरान उनके केवल 10 मिनट हिंदी में दिए गए भाषण से प्रभावित होकर सभा में उपस्थित महिलाओं ने आजादी की जंग के लिए अपने आभूषण उतार दिए थे। कन्नड़ भाषा के शब्दकोषविद् 105 वर्षीय प्रो. जी. वेंकटसुबय्या ने यह बात कही।
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर मंगलवार को सूचना एवं प्रसारण विभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में वीडियो संदेश के माध्यम से उन्होंने कहा कि मधुगिरी में हुए उस कार्यक्रम में उन्होंने स्वयंसेवक के रूप में महात्मा गांधी के कक्ष का सुरक्षा का दायित्व निभाया था। उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक सार्वजनिक सभा के दौरान तुमकूरु जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रंगा अय्यंगार ने महात्मा गांधी के हिंदी भाषण का कन्नड़ में अनुवाद किया था। गांधी ने इस भाषण में लोगों से आजादी के जंग के लिए धन सहयोग की अपील की थी।
उन्होंने कहा कि इस सभा में पुरुषों से अधिक महिलाएं उपस्थित थी। सभा में उपस्थित अधिकतर महिलाओं को महात्मा गांधी का हिंदी भाषण समझ में नहीं आया था इसके बावजूद जब कांग्रेस के स्वयंसेवक सभा में दान संग्रहण करने के लिए बांस की टोकरियां लेकर आगे आए तब इन महिलाओं ने आजादी की जंग के लिए अपने गहने उतार कर इन टोकरियों में डाल दिए। वह दृश्य आज भी मुझे भावविभोर कर देता है।अगले दिन सभा में संग्रहित इन आभूषणों की नीलामी से प्राप्त राशि जिले के कांग्रेस नेताओं ने महात्मा गांधी को सौंपी थी।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के विचार हमेशा प्रासंगिक रहेंगे इन विचारों को युवाओं तक पहुंचाने के लिए विशेष अभियान चलाए जाने की दरकार है। महात्मा गांधी के विचारों का अध्ययन कर हमें उनके विचारों को जीवन में उतारने का प्रयास करना होगा। आजादी के 70 वर्ष बाद भी महात्मा गांधी का आत्मनिर्भर गांव का सपना अभी तक साकार नहीं हुआ है। गांवों के विकास के बगैर देश का विकास नहीं हो सकता है। ग्राम स्वराज्य के माध्यम से ही देश में गणतंत्र और मजबूत हो सकता है। आज भी रोजगार की तलाशी में गावों की ओर से शहरों की ओर युवाओं का पलायन जारी है। इससे स्पष्ट होता है कि देहातों में रोजगार नहीं है। इस स्थिति को हमें बदलना होगा।

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