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गायब हो गया विधायकी का उम्‍मीदवार…फिर आई ये खबर

locationबैंगलोरPublished: Nov 20, 2019 02:51:28 pm

Submitted by:

Ram Naresh Gautam

इस औचक फैसले से भाजपा तथा कांग्रेस का गणित गड़बड़ा गया। हालांकि बुधवार को ऐसी जानकारी सामने आई जो चौकाने वाली रही। जानिए क्या है पूरी कहानी…

गायब हो गया विधायकी का उम्‍मीदवार...फिर आई ये खबर

गायब हो गया विधायकी का उम्‍मीदवार…फिर आई ये खबर

हावेरी. हिरेकेरुर विधानसभा क्षेत्र से उप चुनाव में जनता दल-एस के प्रत्याशी राटिनहल्ली कब्बीनकंठी मठ प्रमुख डॉ. शिवलिंग शिवाचार्य सोमवार को नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद से किसी के संपर्क में नहीं रहे।

लाख प्रयास के बावजूद ना तो उनका फोन लगा और ना ही उनके करीबियों से कुछ जानकारी मिल सकी। मंगलवार को भी पार्टी और नेता, कार्यकर्ता परेशान रहे। बताया गया कि उनका मोबाइल भी बंद है।
जद-एस ने सोमवार को नामांकन पत्र दाखिल करने के अंतिम दिन पूर्व में घोषित उज्‍जेनप्पा कोडिहल्ली के बदले डॉ. शिवलिंग शिवाचार्य को प्रत्याशी घोषित किया था।

जद-एस के इस औचक फैसले से भाजपा तथा कांग्रेस का गणित गड़बड़ा गया। हालांकि बुधवार को स्वामी ने नामांकन वापस ले लिया। जानिए क्या है पूरी कहानी…
मुख्यमंत्री के बेटे का था दबाव
भाजपा नेता व सीएम के पुत्र सांसद बीवाई राघवेंद्र ने स्वामी के साथ संपर्क कर नामांकन पत्र नहीं भरने की अपील की थी। इसके बावजूद स्वामी ने नामांकन पत्र दाखिल कर दिया।
भाजपा प्रत्याशी बीसी पाटिल के समर्थक तथा स्वामी के बीच इस बात को लेकर कहासुनी भी हुई। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस तथा भाजपा के नेता, कार्यकर्ता स्वामी पर नामांकन पत्र वापस लेने के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं। शायद इसीलिए स्वामी गयाब गए हैं।
बिगड़ गया था कांग्रेस, भाजपा का गणित
बीसी पाटिल के समर्थकों का तर्क है कि क्षेत्र में समुदाय विशेष के मतों को ध्यान में रखकर जद-एस ने वीरशैव समुदाय के बीसी पाटिल के खिलाफ लिंगायत समुदाय के शिवलिंग शिवाचार्य को प्रत्याशी घोषित किया।
लिंगायत समुदाय के स्वामी को प्रत्याशी बनाए जाने से भाजपा प्रत्याशी बीसी पाटिल तथा कांग्रेस उम्मीदवार बीएच बन्निकोड की चिताएं बढ़ गई थीं।

कांग्रेस, भाजपा ने बुधवार को ली राहत की सांस
बुधवार को अचानक स्वामी सामने आए। अपेक्षानुरूप उन्होंने अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया। उन पर भाजपा प्रत्याशी बीसी पाटिल और मुख्यमंत्री बीएस येडियूरप्पा के बेटे की ओर से दबाव बनाया जा रहा था।
बेशक स्वामी ने यह निर्णय भाजपा नेताओं के दबाव पर लिया है, लेकिन इससे कांग्रेस को भी फायदा हुआ। क्योंकि उनका प्रत्याशी भी लिंगायत समुदाय से ही है।

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