पहले लोगों को समाचार पत्रों पर भरोसा था। आम लोगों के लिए समाचार पत्र ही एक ऐसा सशक्त मंच था, जिसके माध्यम से वे सरकार तक पहुंच सकते थे। लेकिन आज ऐसे हालांत नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी दैनंदिन बोलचाल की भाषा हमारे संस्कृति की द्योतक है। इसलिए मीडिया में जिस प्रकार की भाषा का उपयोग किया जा रहा है, इस पर हमें आत्मावलोकन करना होगा। हमें इस बात की समीक्षा करनी होगी की मीडिया में सामाजिक समस्याओं के निराकरण के लिए कौन से प्रयास किए जा रहे हैं। इस अवसर पर प्रेमकुमार रवीहब्बे, प्रो. एमएच कृष्णय्या ने विचार व्यक्त किए।