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सोच बदलने से ही सार्थक होगा महिला सशक्तिकरण

locationबैंगलोरPublished: Sep 19, 2018 04:06:49 am

विकास के साथ कई सामाजिक बदलाव आए हैं लेकिन महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया अब भी नहीं बदला है।

सोच बदलने से ही सार्थक होगा महिला सशक्तिकरण

सोच बदलने से ही सार्थक होगा महिला सशक्तिकरण

बेंगलूरु. विकास के साथ कई सामाजिक बदलाव आए हैं लेकिन महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया अब भी नहीं बदला है। जब तक महिलाओं को समाज में बराबर का भागीदार नहीं माना जाएगा तब तक विकास अधूरा है।

यह बात नोबेल गु्रप ऑफ इंस्टीट्यूशन की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. आरती अग्निहोत्री ने मंगलवार को बेंगलूरु इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (बीआइएमएस) के हिंदी विभाग की ओर से हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में महिला सशक्तिकरण पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए कही।

प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर महिलाएं रह चुकी हैं। खेल, विज्ञान, साहित्य सहित सभी क्षेत्रों में महिलाओंं ने सफलता के परचम लहराएं हैं, लेकिन आज भी महिलाओं के प्रति समाज की सोच पूरी तरह नहीं बदली है। शिक्षा और विकास के साथ महिलाओं की स्थिति शहरी इलाकों मेंं काफी सुधरी है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में हालात ज्यादा नहीं बदले हैं। समाज और परिवार को महिलाओंं पर विश्वास करने के साथ ही उन्हें अपने हिसाब से फैसले लेने की छूट देनी चाहिए। महिलाओंं को भी अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का हक है।


प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि सशक्तिकरण का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि हमें जो आजादी मिली है उसका दुरुपयोग हो। आधुनिकता के नाम पर हम अपनी परंपराओं और संस्कृति से दूर हो जाएं। उन्होंने कहा कि महिला सशक्तिकरण तब तक सच नहीं हो सकता जब तक महिलाओंं में सुरक्षा का भाव नहीं होगा।


अतिथि पत्रिका के डिप्टी न्यूज एडिटर कुमार जीवेंद्र झा ने कहा कि सिर्फ कानून या सरकारी व्यवस्था से महिला सशक्तिकरण का सपना पूरा नहीं हो सकता है। शिक्षित व सशक्त महिलाओं को भी प्रतिकूल हालात का सामना करना पड़ता है। इसके लिए समाज की सोच और पारिवारिक माहौल में बदलाव आवश्यक है। उन्होंने कहा कि विकास और बदलाव के दावों के बीच विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं बढ़ रहा है। ५० और ६० के दशक में राज्य विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व आज से अधिक था। १९८९ के बाद से विधानसभा के लिए चुनी गई महिलाओं की संख्या एकल अंक में ही रही है। यह समाज का विरोधाभासी चरित्र और इसमें बदलाव होना चाहिए।


कार्यक्रम की अध्यक्ष व संस्थान की निदेशक गीता सुरेश ने कहा कि महिलाएं खुद शक्ति हैं, उन्हें शक्ति की आवश्यकता नहीं है। जरूरत है तो सिर्फ उनके प्रति सोच बदलने और सहयोग करने की। महिलाएं जितनी आगे बढ़ेंगी, समाज उतना ही प्रगति करेगा। कार्यक्रम संयोजक प्रो. मंजू भार्गवी बी आर, बीआइपीयू कॉलेज के प्राचार्य प्रो. श्रीनिवास, प्रो. प्रभु, प्रो. परिमाला, प्रो. वल्लीयम्मई, छात्र सन्वयक मोहम्मद एन, निर्भय कुमार आदि भी उपस्थित थे।

भाषा जुड़ाव का माध्यम
बीआइएमएस के प्राचार्य डॉ. नागेंद्र ने कहा कि भाषा संवाद और आपसी जुड़ाव का माध्यम है। भाषा से हम अपने भावों को प्रकट करते हैं। किसी भाषा के प्रति दुराव नहीं होना चाहिए। हिंदी देश के विभिन्न हिस्सों को जोडऩे वाली भाषा है। उन्होंने कहा कि जब तक आधी आबादी को बराबरी का मौका नहीं देंगे, विकास का लक्ष्य पूरा नहीं होगा।

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