महिलाओं ने कहा, हम किसी एक दिन की मोहताज नहीं
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस : पत्रिका के साथ साझा किए सुख और संघर्ष
बेंगलूरु. अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर शुक्रवार को हनुमंतनगर स्थित वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ भवन में वर्धमान स्थानकवासी जैन महिला मंडल की पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं के साथ परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर महिलाओं ने कहा कि यह महिला दिवस एक दिन नहीं साल भर मनाना चाहिए। परिचर्चा की शुरुआत करते हुए संचालक पूर्व मंत्री प्रमिला मेहता ने मां को समर्पित गीत की प्रस्तुति दी। 'ऐ मां तेरी सूरत से अलगÓ गीत गाया तो सारी महिलाओं का साथ मिला और शुरू में ही माहौल में मातृशक्ति के स्वर गुंजायमान हो गए। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि महिला दिवस पर हम अपने सुख भरे लम्हों को याद करेंगे। सोच भी सकारात्मक और कार्य भी सकारात्मक होना चाहिए। उन्होंने महिलाओं को समर्पित स्वरचित गीत भी प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर महिला मंडल की अध्यक्ष मंजू बालिया ने कहा कि ३६५ दिन ही महिलाओं के हैं। उन्होंने कहा कि हम रोज ऐसे ही महिला दिवस मनाते हैं। किरण लोढा ने 'कब पैरों पर खड़ी हुई मां तेरी ममता की छांव में...Ó कविता के माध्यम से अपनी मां व बेटियों को संदेश दिया। रिद्धि चेलावत ने कहा कि वे यहां बहू के रूप में हैं लेकिन परिवार के सहयोग के चलते वे अपना खुद का काम कर पा रही हैं।
निर्भया गुनहगारों के अभी तक फांसी के फंदे से बचे रहने पर महिलाओं ने आक्रोश जताया। संगीता धोका ने कहा कि एक औरत की लाज हम सब महिलाएं ही बचा सकती हैं। इस मंच के माध्यम से उन्होंने निर्भया मामले में न्याय की गुहार की। उन्होंने एक महिला के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कविता के माध्यम से किया। कार्यक्रम में उपस्थित रोशनी ने कहा कि मेरी मां मेरी पेे्ररणा है। मां उन्हें कॅरियर बनाने के लिए पहले पढ़ाई का मौका देती हैं। उन्होंने कहा कि यदि उनके बेटी हुई तो वे भी अपनी मां की तरह उसे पालन पोषण करेंगी जैसा कि उनकी मां ने उनका किया। किरण संचेती ने कविता के माध्यम से नारी की गौरव गाथा का बखान किया। उन्होंने कि 'धरती का शृंगार है नारी अब नहीं रही अबला ये नारीÓ कविता प्रस्तुत कर उपस्थित महिलाओं की वाह-वाही बटोरी। एक दिन नहीं हर दिन नारी दिवस मनाओ।
विद्या धारीवाल ने कहा कि नारी में संघर्ष की ताकत है। नारी में सहनशीलता है। सरला नागौरी ने कहा कि बचपन में उनका भी सपना एक पत्रकार बनने का था। उन्होंने अपने संघर्ष की कहानी भी साझा की तो महिलाओं ने उनके हौंसले की दाद दी। अनिता धोका ने बचपन के अनुभव साझा किए। उन्होंने तीन महिला दोस्तों की कहानी साझा की।
चंचल गोटावत ने कहा कि उनका सपना था कि वह स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हों और यही जुनून लेकर उन्होंने एक हजार रुपए से अपना व्यवसाय शुरू किया था। आज लाखों रुपए का व्यवसाय कर रही हैं। उनका कहना है कि वे बहू को अपनी बेटी समझती हैं। ममता ने कहा कि आज लड़कियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। इसलिए उन्होंने लड़की को गोद लिया। शशि ने संघर्ष के पल साझा करते हुए कहा कि किसी कारणवश वह अपने पुत्र को ज्यादा नहीं पढ़ा पाईं। लेकिन उनके पुत्र ने अपनी बहन को पढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। आज बेटी प्रिया मेहता देश की ख्यातनाम फैशन डिजाइनर हैं। परिचर्चा में जैन समाज की काफी संख्या में महिलाएं उपस्थित थीं। अंत में महिलाओं ने उन्हें मंच मुहैया कराने के लिए पत्रिका को धन्यवाद दिया।
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