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लॉकडाउन को महिलाओं ने अवसर के तौर पर लिया

locationबैंगलोरPublished: May 25, 2020 05:11:32 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

रोज किए नए आविष्कारबच्चों को रखा जंकफूड से दूर

लॉकडाउन को महिलाओं ने अवसर के तौर पर लिया

लॉकडाउन को महिलाओं ने अवसर के तौर पर लिया

बेंगलूरु. कोरोना से बचाव के लिए देश भर में लगाया गया लॉकडाउन कई परिवारों के लिए प्रशिक्षण काल बन गया। परिवारों ने इसे सजा के तौर पर नहीं मानते हुए अवसर के तौर पर लिया और परिवारों को मजबूती प्रदान करने में भरपूर सहयोग किया। महिलाओं ने जहां नए-नए पकवान बनाकर अपना हाथ साफ किया वहीं बच्चों को जंकफूड से दूर रखा।
हलसूर निवासी राजेश्वरी तातेड़ का कहना है कि लॉकडाउन में हमें एक मौका मिला परिवार के हर एक सदस्य के साथ अच्छा समय बिताने का। हम सबने एक दूसरे कि हर समय काम में मदद की। साथ में भोजन किया ओर एक दूसरे के साथ अच्छे-अच्छे खेलों के साथ वक्त बिताया। परिवार के साथ धार्मिक सीरियल जैसे रामायण महाभारत और आदि का लत्फ उठाया। लॉकडाउन ने हमें सिखाया की बचत कितनी जरूरी है ताकि कठिन समय में उनका उपयोग कर जीवन अच्छे से बिताया जा सके। परिवार ने एक साथ मिल कर तमाम कोरोना पीडि़तों के लिए भी प्राथना की। आस पास के गरीब लोगों की सहायता की ओर उन लोगो को भरोसा दिलाया को वे जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाएंगे जो मानवता का कर्तव्य है।
बोम्मनहल्ली निवासी शायरी देवी का मानना है कि लॉकडाउन में परिवार के साथ रहने का मौका मिला जो आनंदमय रहा। घर में एक दूसरे के काम में हाथ बटाया। साथ में खाने का टेलीविजन पर रामायण, महाभारत के कार्यक्रम देखना ये सभी जिंदगी के यादगार पल रहेंगे। लॉक डाउन में हरी सब्जियों का थोड़ा अभाव रहा है लेकिन हमनें राजस्थानी सूखी सब्जियों के साथ घर चलाया। एहसास हुआ बचत ही भविष्य है। लॉकडाउन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा चलाये गए अभियान कोई भूखा न सोए इसके लिए आस पास के मोहल्लोंं में गरीबो को राशन व खाना बाटकर उन लोगों का हौसला बढ़ाया। साथ में कोरोना से बचने के लिए, हाथों को सैनेटाइज करना मास्क लगाना नहीं भूले।
उद्यमी प्रीति सिंघी ने कहा कि यह जानने में देर नहीं लगी कि कोरोना वायरस एक लाइलाज बीमारी है। इसके लिए सावधानी ही बचाव है। दो महीने के लॉकडाउन में पौष्टिक आहार एवं सात्विक आहार, व्यायाम और अनुशासित दिनचर्या पर ही ध्यान में रखा गया। इससे न सिर्फ कोरोना बल्कि अन्य बीमारियों से भी दूर रह सकते हैं। प्रकृति का वातावरण पूरी तरह शांत एवं मनमोहक रहा, शरीर के छोटे-छोटे रोग समाप्त हो गए। बार-बार हाथ धोना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना और मास्क पहनना जीवन का एक नया अनुभव रहा। जिसका पूरा परिवार ने पालन किया। लॉकडाउन ही नहीं कोरोना काल में परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर एक साथ ही खाना खाते हैं। परिवार के सभी सदस्यों के एक साथ बैठने से अनेक समस्याओं का भी समाधान हुआ।
टी.दासरहल्ली निवासी नेहा चावत ने कहा कि इस लॉकडाउन ने बहुत कुछ सिखाया है। अध्यात्म व धर्र्म का पूरा लाभ लिया। पारिवारिक जीवन में आने वाली हर कठिनाइयों का डट कर मुकाबला करने का हौसला मिला। कम खर्च में भी घर कैसे चलाया जाए यह सबक सीखा। माता पिता, सास-ससुर से दूर होकर भी डिजीटल के माध्यम से उनसे गहरा संबंध बना जो पिछले 14 साल में नहीं बना। कोरोना से बचने के लिए 60 दिनों से घर में हैं और दोनों बच्चे आज दिन तक घर से बाहर नहीं निकल, यह नामुमकीन सा लगता है पर सत्य है। खाली समय में सिलाई मशीन पर खुद सोफा के कवर बनाए पुराने कपड़ों का उपयोग किया। पहले का खर्च और अभी के खर्च में 50 प्रतिशत की कमी आई। फिटनस का लाभ मिला, कसरत, व्यायाम करने का मौका मिला।
बसवनगुड़ी निवासी मंजू भण्डारी के लिए लॉकडाउन जहां नवेली बहू और परिवार के साथ हसीन लम्हे, यादगार पल और खुशनुमा माहौल के लिए अविस्मरणीय बना। वहीं एक कसक यह रही कि जोधपुर के टिकट होने के बावजूद बड़ी बहू की देखभाल करने जोधपुर नहीं जा सके। बुद्ध पूर्णिमा के दिन जन्मी पौत्री को अभी गोद में नहीं खिला पाए हैं। मूल से ब्याज बालो (प्यारा) लागे और भगवान ने पुत्री नहीं दी पर पौत्री रूपेण अनुपम उपहार दे दिया है। पारिवारिक सुख में अभिवृद्धि के लिए अद्वितीय रहा है तथा नई नवेली बहू को सिखाने और उससे नए व्यंजनों को बनाने की विधि सीखने के लिए भी जाना जाएगा यह समय निश्चित रूप से सामूहिक परिवारों को एक नया पाठ सिखाने वाला ही रहा। इस दौरान मुंह पर मास्क लगाना वा हाथों को सैनेटाइज करना नहीं भूले।
कॉक्सटाउन निवासी राखी गादिया ने बताया कि लॉकडाउन में पूरा परिवार स्वास्थ्य के प्रति विशेष जागरूक बन गया। हमारी पूरी आहार शैली आरोग्य वर्धक बन गई है। सुबह नाश्ता हो या दिन का भोजन सब कुछ स्वास्थ्य के लिए अनुकूल बनाने का मेरा लक्ष्य रहा। मेरे पूरे परिवार में प्रेम एवं एक दूसरे को सहयोग का सिलसिला बहुत प्रगाढ़ हुआ। हमने सास-ससुर की पचासवीं वैवाहिक वर्षगांठ 8 मई को सिर्फ घर के सदस्यों ने ही पूरे उत्साह से साथ मनाई जिसका आनंद हमें हमेशा याद रहेगा। प्रतिदिन हमने नई ऊर्जा निर्माण के लिए बच्चों के साथ घरेलू खेलों का पूरा आनंद लिया। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए प्रतिदिन योग अभ्यास स्वयं भी करती थी और अपने सभी परिवारजनों को भी कराती थीं। दुकाने बंद होने की वजह से कम खर्च में भी काम चलाने का अच्छा अनुभव हो गया।
राजाजीनगर निवासी उमा पीपाड़ा ने बताया कि लॉकडाउन में पूरे परिवार के साथ सबसे अधिकतम समय व्यतीत करने का आनंद अनूठा ही है। सभी का सहयोग मिलने की वजह से घर के सभी काम कम समय में ही निपट जाते थे, जिससे इस अवधि में पूरे परिवार के साथ धर्म ध्यान करने का विशेष अवसर मिला। काम काज पूरा करके मैं सामायिक साधना करती थी। प्रतिदिन करीब 3 से 4 घंटे सामायिक के दौरान धार्मिक स्वाध्याय करके मैंने अपने ज्ञान में विशेष वृद्धि की। साथ ही अपनी पुत्रवधु के साथ भी अपने अनुभव साझा किए। साथ ही हैल्दी सलाद और भोजन की नई-नई वैरायटियों को बनाने का रोमांचक अनुभव मिला। प्रतिदिन उकाली का सेवन करने से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद मिली, सभी ने बिना विशेष कारण के घर से बाहर कदम नहीं रखा। कम खर्च में भी कैसे हम अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर सकते हैं यह हमें लॉकडाउन ने सिखा दिया।
शिवाजी नगर निवासी निर्मला सांखला ने कहा कि लॉकडाउन के समय में आज करीब 55 दिनों से घर पर ही अपनों के साथ 24 घंटे रहना अपने में ही एक सुखद अनुभव रहा। जहां लॉकडाउन के पूर्व दैनिक समय निर्धारित रहा और दिन भर अकेले घर के कार्यों में ही लगा रहना था, रूटीन पूरी तरह बदल गया है। लेकिन लॉकडाउन जब से प्रारंभ हुआ बॉलकनी से घंटी बजाना, भजन गाना, दिया जलाना, कोरोना वारियर्स के प्रति आभार व्यक्त करना सपरिवार सामिलित होना एक आनंद की अनुभूति रही। लॉक डाउन के समय में मल्टी टास्किंग कार्य होते जो पहले कभी न हुए, जैसे घर बैठे प्रार्थना, ऑनलाइन गुरु भगवन्तों द्वारा प्रवचन का श्रवण, परिजनों के साथ खेलना, वेबिनार द्वारा संस्थाओं की मीटिंग अटेंड करना, कभी किसी परिवार सदस्य का जन्म दिवस, मातृ दिवस, अनेक त्योहार एवं पर्व भी मनाए। हमने जैसे प्रभु महवीर जन्म कल्याणक, अक्षय तृतीया परणोत्सव, शासन स्थापना दिवस के दिन सामूहिक सामायिक, नवकार मंत्र जाप इत्यादि।
राजाजीनगर निवासी फिटनेस सलाहकार शालिनी अग्रवाल का कहना है कि हफ्ते में तीन से चार दिन बाहर का खाना खाने वाले बच्चे लॉकडाउन के दौरान घर का बना पौष्टिक खाना खाने लगे। पिज्जा, बर्गर जंक फूड खाने वाले बच्चों को अब घर की दाल, रोटी हरी सब्जियों का स्वाद अच्छा लगने लगा। अपनी परेशानियां अब दोस्तों की जगह अपने मां-बाप से साझा करने लगे। कम खर्च में जीना सीख गए। दादा दादी के साथ बैठकर अब अपने मन की बात साझा करना अच्छा लगने लगा। बच्चे अपनी जड़ों से जुड़े लगे हैं और पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण वाले बच्चे अपनी संस्कृति को समय देने लगे हैं। यह लॉकडाउन निश्चित रूप से हमें बहुत कुछ सिखा गया है। परिवार के सभी सदस्य एक ही छत के नीचे रहने के कारण परिवार में प्रेम बढ़ा है।
महादेवपुरा निवासी सुशीला देवी का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान संयुक्त परिवार के साथ रहने का मौका मिला। नए-नए पकवान बनाना सीखा और लॉकडाउन को सजा के तौर पर नहीं लेते हुए एक अवसर के तौर पर लिया और रोज कुछ नया करने का मन बनाया और परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर कुछ नया ही किया। राजस्थान के प्रसिद्ध कैर सांगरी की सब्जी का कई बार लुत्फ उठाया। जबकि इस सब्जी का राजस्थानी परिवार तीज त्योहार पर ही उपयोग करते हैं। अपनी पुत्र वधु को कैर सांगरी की सब्जी बनाने का प्रशिक्षण दिया। कुछ भी कहें लॉकडाउन के सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षण काल ही रहा। इस दौरान सभी को कुछ नया करने का अवसर मिला। दिन में १५ से २० बार हाथ धोए और सैनेटाइजर व मास्क का उपयोग कर कोरोना को दूर रखा।
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