केंद्र सरकार में अपनी सेवाएं देने वाले के. स्वामी ने कहा ‘मैंने अपना कॅरियर अपने साथी रंगनाथ के साथ सहायक सुपरवाइजर के तौर पर शुरू किया। हम इस ऐतिहासिक विधानसौधा के हर पत्थर, हर स्लैब और हर पिलर के निर्माण का हिस्सा बने। मैं फाइलों और वित्तीय जिम्मेदारियों को संभाल रहा था साथ ही इंजीनियरों व मजदूरों के साथ समन्वय भी देख रहा था। दिनभर निर्माण कार्य की देखरेख और निगरानी भी उन्हीं की जिम्मेदारी थी।’
पत्थरों से बने इस शानदार विधानसौधा के निर्माण की आधारशीला 1951 में रखी गई। निर्माण कार्य वर्ष 1952 में शुरू हुआ और चार साल में यह मशहूर इमारत बनकर तैयार हो गई। इसके लिए पत्थर मल्लसांद्रा और बेट्टाहलसूर से से मंगाए गए जबकि स्लैब दोड्डबल्लापुर से और ब्लॉक बेंगलूरु के बाहरी इलाकों में स्थित खदानों से लाए गए।
इसके निर्माण पर 1.86 करोड़ रुपए की लागत आई थी। कर्नाटक के अलावा आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के लगभग 200 मजदूरों ने दिन-रात काम किया जिसके बाद भारत का सर्वश्रेष्ठ विधानसभा अपने अस्तित्व में आया। रंगनाथ और स्वामी वर्ष 1953 में एक ही दिन और एक ही साथ इस महत्वपूर्ण परियोजना से जुड़े।
उन दिनों की याद करते हुए स्वामी ने कहा कि ‘एक दिन 36 मजदूरों की एक टीम कासियारीन पोल पर एक मुंडेर चढ़ाने के लिए सुबह 9 बजे से संघर्ष करती रही। तभी एक मजदूर जिसका नामक महादाया था मेरे पास आया और उस समस्या के हल के लिए एक सुझाव दिया। मैं इंजीनियर था लेकिन मैंने उसे अपने अहं पर नहीं लिया और उसे कहा कि अपनी योजना के मुताबिक आगे बढ़ो। अंतत: उस मुंडेर को 24 मजदूरों की सहायता से उस पोल पर स्थापित किया जा सका।’ उन्होंने कहा कि मंजदूरों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा थी। वे एक साथ भोजन करते थे और काम पूरा होने के बाद मिलकर मनोरंजन करते थे। उस समय भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं था और मजदूरों की भी एक प्रतिष्ठा थी।
रंगनाथ ने कहा कि वे विधानसभा के निर्माण के बाद एक बार भी उसके अंदर नहीं गए। वहीं एक बार भी किसी समारोह के लिए ना तो उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया ना ही अभार जताया गया। अब इस समारोह के लिए बुलाया जा रहा है लेकिन अब तो काफी देर हो चुकी है।
तत्कालीन मुख्यमंत्री के. हनुमंतय्या ने विधानसभा के निर्माण में व्यक्तिगत रुचि ली। उन्होंने जिन-जिन महत्वपूर्ण स्थलों का दौरा किया वहां से निर्माण से जुड़े आइडिया लेकर आए जो विधानसौधा के निर्माण में प्रयुक्त हुए। रंगनाथ ने कहा कि मुख्यमंत्री लगभग हर रोज निर्माण स्थल पर पहुंचे और इंजीनियरों व मजदूरों के साथ परस्पर चर्चा की।
स्वामी ने एक विशेष घटना को याद करते हुए कहा ‘उत्तरी छोर पर स्थित पहले ब्लॉक को लेकर हनुमंतय्या ने एक सुझाव दिया कि पोर्टिको और मुख्य ढांचे के बीच एक मार्ग रखा जाए। यह मार्ग फ्लैग मास्ट और समान ढोने के काम आएंगे। लेकिन, इंजीनियर उस सुझाव को भूल गए।
कुछ दिनों के बाद जब हनुमंतय्या दौरे से लौटे तो निर्माण स्थल पर पहुंचे। उन्होंने देखा कि उनके सुझाव के अनुरूप काम नहीं हुआ है। उन्होंने फिर से उसका निर्माण करवाया। गौरतलब है कि राज्य सरकार आगामी 25 और 26 अक्टूबर को विधानसौधा की हीरक जयंती मनाएगी।