कष्ट निवारण के लिए नवपद की आराधना करना चाहिए
बैंगलोरPublished: Apr 02, 2020 05:54:35 pm
आचार्य देवेन्द्र सागर के प्रवचन
कष्ट निवारण के लिए नवपद की आराधना करना चाहिए
बेंगलूरु. नवपद ओली के तीसरे दिन आचार्य देवेंद्रसागर ने कहा कि जैसी करनी, वैसी भरनी यह यथार्थ वचन है। दिन खाने-पीने पैसे कमाने में चला जाए, रात सोने में चली जाए, सारा जीवन व्यर्थ में चला जाए। इसमें हमारी लघुता है प्रभुता नहीं। शरीर पर लगे हुए दाग दिख जाने पर हम तुरंत उसे मिटाने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार आत्मा पर लगे हुए कर्मों के दाग को मिटाने का प्रयास हमारे जीवन में क्यों नहीं। आत्मा शुद्ध स्फटिक की तरह अत्यंत निर्मल है। कर्मों के आवरण के कारण हमारी आत्मा मलीन बन चुकी है। आत्मा से कर्मों की मलिनता को दूर करने के लिए नवपद की आराधना हमें करनी चाहिए। आचार्य नवपद में तीसरा पद है और यह सिद्धचक्र यंत्र में अरिहंत के दाहिनी तरफ स्थित होता है।
यह गुरु तत्व में पहला है, आचार्य अरिहंत के उत्तराधिकारी हैं और अरिहंत द्वारा स्थापित चार संघ के नेता हैं। अरिहंत की अनुपस्थिति में वह संघ से संबंधित सभी मामलों में सर्वोच्च और परम निर्णय लेने का अधिकारी हैं। वह जैन आगम शास्त्रों की व्याख्या का परम अधिकारी भी है। वह पांच अध्यात्मिक संचालनों, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार और वीर्याचार के लिए साधुओं को पर्यवेक्षित तथा प्रेरित करता है। पहले चार आचार सिद्धचक्र के अंतिम चार पदों से संबंधित हैं। पांचवां वीर्याचार, उत्साह और इन चारों का पालन करने की शक्ति है। आचार्य में छत्तीस गुण हैं और सुनहरा पीला रंग इनका प्रतीक है। जैन अनुयायी नवपद ओली के तीसरे दिन शुक्ल नवमी को आचार्य पाद की पूजा करते हैं। वे केवल उबले हुए चने खाकर आयंबिल करते हैं। आचार्य का रंग सुनहरा पीला है, इसलिए आयंबिल के लिए चुना गया अनाज पीला है अर्थात चने। इस दिन आचार्य पद की पूजा व ध्यान करते हैं।